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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२४

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काम निकाल लिया। मुझे इस बात की बड़ी शर्म है कि मैंने अपने दुश्मन को दोस्त समझा और धोखा खाया।

देवीसिंह––अक्सर ऐसा धोखा हो जाता है। खैर, लाली तो अभी हम लोगों के कैद ही में है, कहीं जाती नहीं, रही कुन्दन, सो इन्द्रजीतसिंह को लेकर लौटने पर कोई तरकीब ऐसी जरूर निकाली जायगी, जिसमें बाकी लोगों का असल हाल मालूम हो।

इसी तरह की बातें करते हुए दोनों ऐयार चलते गये। रात को एक जगह दो-तीन घण्टे आराम किया और फिर चल पड़े। सवेरा होते-होते एक ऐसी जगह पहुँचे जहाँ एक छोटा-सा टीला ऐसा था जिस पर चढ़ने से दूर-दूर तक की जमीन दिखाई देती थी तथा वहाँ से कमलिनी का तालाब वाला मकान भी बहुत दूर न था। दोनों ऐयार उस टीले पर चढ़ गये और मैदान की तरफ देखने लगे। यकायक शेरसिंह ने चौंक कर कहा, "अहा, हम लोग क्या अच्छे मौके पर आये हैं! देखो, वह कुँअर इन्द्रजीतसिंह और वह औरत, जिसने उन्हें फँसा रक्खा है, घोड़े पर सवार इसी तरफ चले आ रहे हैं!"

देवीसिंह––हाँ, ठीक तो है, उनके साथ और भी कई सवार हैं।

शेरसिंह––मालूम होता है, उस औरत ने उन्हें अच्छी तरह अपने वश में कर लिया है। बेचारे इन्द्रजीतसिंह क्या जानें कि यह उनकी दुश्मन है। चाहे जो हो, इस समय इन लोगों को आगे न बढ़ने देना चाहिए।

देवीसिंह––सबके आगे एक औरत घोड़े पर सवार आ रही है। मालूम होता है कि उन लोगों को रास्ता दिखाने वाली यही है।

शेरसिंह––बेशक ऐसा ही है, तभी तो सब कोई उसके पीछे-पीछे चल रहे हैं। पहले उसी को रोकना चाहिए, मगर घोड़ों की चाल बहुत तेज है।

देवीसिंह––कोई हर्ज नहीं, हम दोनों आदमी घोड़े की राह पर अड़कर खड़े हो जायँ और अपने को घोड़े से बचाने के लिए मुस्तैद रहें। अच्छी नसल का घोड़ा यकायक आदमी के ऊपर टाप न रक्खेगा, वह लोगों को राह में देख जरूर अड़ेगा या झिककेगा, बस, उसी समय घोड़े की बाग थाम लेंगे।

दोनों ऐयारों ने बहुत जल्द अपनी राय ठीक कर ली और दोनों आदमी एक साथ घोड़ों की राह में अड़ के खड़े हो गये। बात-की-बात में वे लोग भी आ पहुँचे। तारा का घोड़ा रास्ते में आदमियों को खड़ा देख कर झिझका और आड़ देकर बगल की तरफ घूमना चाहा, उसी समय देवीसिंह ने फुर्ती से लंगाम पकड़ ली। इस समय तारा का घोड़ा लाचार रुक गया और उसके पीछे आने वालों को भी रुकना पड़ा। कुँअर इन्द्रजीत सिंह शेरसिंह को तो नहीं जानते थे, मगर देवीसिंह को उन्होंने पहचान लिया और समझ गये कि ये लोग मेरी ही खोज में घूम रहे हैं। आखिर वे देवीसिंह के पास आये और बोले––

कुमार––यद्यपि आप सब काम मेरी भलाई ही के लिए करते होंगे, परन्तु इस समय हम लोगों को रोका सो अच्छा न किया।

देवीसिंह––क्या मामला है, कुछ कहिए तो!

कुमार––(जल्दी में घबराए हुए ढंग से) बेचारी किशोरी एक आफत में फँसी