पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
27
 

देवीसिंह––इसमें कोई शक नहीं कि यह बच जायगा।

शेरसिंह––(देवीसिंह की तरफ देखकर) हमने (कमलिनी की तरफ इशारा करके) इनके बारे में भी धोखा खाया, वास्तव में यह कुमार के साथ नेकी कर रही हैं।

देवीसिंह––बेशक यह कुमार की दोस्त हैं, मगर तुमने इनके बारे में कई बातें ऐसी कही थीं कि अब भी

कुमार––नहीं-नहीं देवीसिंह जी, मैं इन्हें अच्छी तरह आजमा चुका हूँ; सच तो यह है कि इन्हीं की बदौलत आज आप लोगों ने मेरी सूरत देखी।

इसके बाद कुमार ने शुरू से अपना पूरा किस्सा देवीसिंह से कह सुनाया और कमलिनी की बड़ी तारीफ की।

कमलिनी––आप लोगों ने मेरे बारे में बहुत-सी बातें सुनी होंगी और वास्तव में मैंने जैसे काम किये हैं वे ऐसे नहीं कि कोई मुझ पर विश्वास कर सके। हाँ, जब आप लोग मेरा असल भेद जान जायेंगे तो अवश्य कहेंगे कि तुम्हारे हाथ से कभी कोई बुरा काम नहीं हुआ। अभी कुमार को भी मेरा कुछ हाल मालूम नहीं। समय मिलने पर मैं अपना विचित्र हाल आप लोगों से कहूँगी और उस समय आप लोग भी कहेंगे कि बेशक शेरसिंह और उनकी भतीजी कमला ने मेरे बारे में धोखा खाया।

शेरसिंह––(ताज्जुब में आकर) आप मुझे और मेरी भतीजी कमला को कैसे जानती हैं?

कमलिनी––मैं आप लोगों को बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ। हाँ, आप लोग मुझे नहीं जानते और जब तक मैं स्वयं अपना हाल न कहूँ, जान भी नहीं सकते।

इसके बाद कुमार ने देवीसिंह से शेरसिंह का हाल पूछा और उन्होंने सब हाल कहा। इसी समय उस जख्मी ने फिर आँखें खोलीं और पीने के लिए पानी माँगा जिसका इलाज ये लोग कर रहे थे।

अबकी दफे बाँकेसिंह अच्छी तरह होश में आ गया और कमलिनी के पूछने पर उसने इस तरह बयान किया––


"इसमें कोई सन्देह नहीं कि अग्निदत्त किशोरी को ले गया क्योंकि मैं उसे बखूबी पहचानता हूँ। मगर यह नहीं मालूम कि किशोरी की तरह धनपति भी उसके पंजे में फँस गई या निकल भागी, क्योंकि लड़ाई खतम होने के पहले ही मैं जख्मी होकर गिर पड़ा था। मैं जानता था कि अग्निदत्त बहुत-से बदमाशों और लुटेरों के साथ यहाँ से थोड़ी दूर एक पहाड़ी पर रहता है और इसी सबब से धनपति को मैंने कहा भी था कि इस जगह आपका अटकना मुनासिब नहीं, मगर होनहार को क्या किया जाय! (हाथ जोड़कर) महारानी, न मालूम क्यों आपने हम लोगों को त्याग दिया? आज तक इसका ठीक पता हम लोगों को न लगा।"

बाँकेसिंह की आखिरी बात का जवाब कमलिनी ने कुछ न दिया और उससे उस पहाड़ी का पूरा पता पूछा जहाँ अग्निदत्त रहता था। बाँकेसिंह ने अच्छी तरह वहाँ का पता दिया। कमलिनी ने अपने सवारों में से एक को बाँकेसिंह के पास छोड़ा और बाकी सब को साथ ले वहाँ से रवाना हुई। इस समय कुँअर इन्द्रजीतसिंह की क्या