पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२६

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देखने से जाना जाता है। मगर इनमें बहुत-सी लाशें ऐसी हैं जिन्हें मैं नहीं पहचानती। न मालूम इस लड़ाई का क्या नतीजा हुआ, धनपति गिरफ्तार हो गई या भाग गई, और किशोरी किसके कब्जे में पड़ गई! (कुमार की तरफ देखकर) शायद आपके सिपाही या ऐयार लोग यहाँ आए हों?

कुमार––नहीं। (देवीसिंह की तरफ देखकर) आप क्या खयाल करते हैं?

देवीसिंह––खयाल तो मैं बहुत-कुछ करता हूँ, इसका हाल कहाँ तक पूछिएगा, मगर इन लाशों में हमारी तरफ वालों की कोई लाश नहीं है जिससे यह मालूम हो कि वे लोग यहाँ आये होंगे।

सब लोग इधर-उधर घूमकर उन लाशों को देखने लगे। यकायक देवीसिंह एक ऐसी लाश के पास पहुँचे जिसमें जान बाकी थी और वह धीरे-धीरे कराह रहा था। उसके बदन में कई जगह जख्म लगे हुए थे और कपड़े खून से तर थे। देवीसिंह ने कुमार की तरफ देख के कहा, "इसमें जान बाकी है, अगर बच जाय और कुछ बातचीत कर सके, तो बहुत-कुछ हाल मालूम होगा।"

कई आदमी उस लाश के पास जा मौजूद हुए और उसे होश में लाने की फिक्र करने लगे। उसके जख्मों पर पट्टी बाँधी गई और ताकत देने वाली दवा भी पिलाई गई। घोड़े नंगी पीठ करके दम लेने, हरारत मिटाने और चरने के लिए लम्बी बागडोरों से बाँध कर छोड़ दिए गए।

आधे घण्टे बाद उस आदमी को होश आया और उसने कुछ बोलने का इरादा किया, मगर जैसे ही उसकी निगाह कमलिनी पर पड़ी, वह काँप उठा और उसके चेहरे पर मुर्दनी छा गई। उसके दिल का हाल कमलिनी समझ गई और उसके पास जाकर मुलायम आवाज में बोली, "बाँकेसिंह, डरो मत, मैं वादा करती हूँ कि तुम्हें किसी तरह की तकलीफ न दूँगी। हाँ, होश में आओ और मेरी बात का जवाब दो।"

कमलिनी की बात सुनकर उसके चेहरे की रंगत बदल गई, डर की निशानी जाती रही, और यह भी जाना गया कि वह कमलिनी की बातों का जवाब देने के लिए तैयार है।

कमलिनी––किशोरी को लेकर धनपति यहाँ आई थी?

बाँकेसिंह––(सिर हिलाकर धीरे से) हाँ, मगर...

कमलिनी––मगर क्या?

बाँकेसिंह––उसने किशोरी को जला देना चाहा था, मगर एकाएक अग्निदत्त और उसके साथी लोग आ पहुँचे और लड़-भिड़ कर किशोरी को ले गये। हम लोग उन्हीं के हाथ से जख्मी...

बाँकेसिंह ने इतनी बातें धीरे-धीरे और रुक-रुककर कहीं क्योंकि जख्मों से ज्यादे खून निकल जाने के कारण वह बहुत ही कमजोर हो रहा था, यहाँ तक कि बात पूरी न कर सका और गश में आ गया। इन लोगों ने उसे होश में लाने के लिए बहुत-कुछ उद्योग किया मगर दो घण्टे तक होश न आया। इस बीच में देवीसिंह ने उसे कई दफे दवा पिलाई।