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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२९

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"आखिर हरामजादी किशोरी मेरे हाथ लगो! इसमें कोई शक नहीं कि अब यह अपने किये का फल भोगेगी। इसकी शैतानी ने मुझे जीते-जी मार ही डाला था मगर मैंने भी पीछा न छोड़ा। कम्बख्त अग्निदत्त की क्या हकीकत थी जो मेरे हाथ से अपनी जान बचा ले जाता। मैं उन लोगों को ललकारता हूँ जो अपने को बहादुर, दिलेर और राजा मानते हैं! कहाँ हैं वीरेन्द्रसिंह, इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह, जो अपनी बहादुरी का दावा रखते हैं? आवें और मेरा चरण छू कर माफी माँगें। कहाँ हैं उनके ऐयार, जो अपने को विधाता ही समझ बैठे हैं? आवें और मेरे ऐयारों के सामने सिर झुकावें। मुझे विश्वास है कि उन लोगों में से कोई-न-कोई किशोरी को खोजता यहाँ जरूर आवेगा और इसलिए मैं यह चिट्ठी लिखकर यहाँ रक्खे जाता हूँ कि ऊपर लिखे व्यक्ति या उनके साथी और मददगार लोग, चाहे जो कोई भी हों, अपनी-अपनी जान बचावें, क्योंकि उनकी मौत आ चुकी है और अब वे लोग मेरे हाथ से किसी तरह बच नहीं सकते। कोई यह न कहे कि मैं छिपकर अपना काम करता हूँ और किसी को अपनी सूरत नहीं दिखाता। जिसको मेरी सूरत देखनी हो मेरे घर चला आवे, मगर होशियार रहे क्योंकि मेरे सामने आनेवाले की भी वही दशा होगी जो यहाँ वालों की हुई। लो, मैं अपना पता भी बताये देता हूँ, जिसको आना हो, मेरे पास चला आवे। यहाँ से पाँच कोस पूरब एक नाला है उसी के किनारे दक्खिन रुख दो कोस तक चले जाने के बाद मेरा मकान दिखाई पड़ेगा।

—बहादुरों का दादागुरु।"

इस चिट्ठी ने सब को अपने आपे से बाहर कर दिया। मारे क्रोध के कुँअर इन्द्रजीतसिंह की आँखें कबूतर के खून की तरह सुर्ख हो गईं। देवीसिंह और शेरसिंह दाँत पीसने लगें।

कुमार––चाहे जो हो, मगर इस हरामजादे से मुकाबला किये बिना मैं किसी तरह आराम नहीं कर सकता।

देवीसिंह––बेशक इसको इस ढिठाई की सजा दी जायगी।

कुमार––अब यहाँ ठहरना व्यर्थ है, चलकर उसे ढूँढ़ना चाहिए।

कमलिनी––बेशक उसने बड़ी वेअदबी की है, उसे जरूर सजा देनी चाहिए। मगर आप लोग बुद्धिमान हैं, मुझे विश्वास है कि बिना समझे-बूझे किसी काम में जल्दी न करेंगे।

कुमार––ऐसे समय में विलम्ब करना अपनी बहादुरी में बट्टा लगाना है।

कमलिनी––आप इस समय क्रोध में हैं इसलिए ऐसा कहते हैं, नहीं तो आप स्वयं पहले किसी ऐयार को भेजना मुनासिब समझते। इतनी बड़ी शेखी के साथ पत्र लिखने वाले को मैं सच्चा नहीं समझ सकती। खुल्लमखुल्ला आप लोगों का का मुकाबला करना हँसी-खेल है? क्या यह केवल उन्हीं आदमियों का काम है जो दगाबाज नहीं, बल्कि सच्चे बहादुर हैं? कभी नहीं, कभी नहीं, बेशक यह कोई पूरा बेईमान और हरामजादा आदमी है। इसके अतिरिक्त आप जरा इस रात के समय और अपने घोड़ों की हालत पर तो ध्यान दीजिये कि अब वे एक कदम भी चलने लायक नहीं रहे।