पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/३०

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यद्यपि कुमार और उनके ऐयार इस समय बड़े क्रोध में थे परन्तु कमलिनी की सच्ची हमदर्दी के साथ मीठी-मीठी बातों ने उन्हें ठंडा किया और इस लायक बनाया कि वे नेक और बद को सोच सकें। कमलिनी के आदमियों के साथ और ऐयारों के बटुए में बहुत-कुछ खाने का सामान था। पहाड़ी के नीचे एक छोटा-सा चश्मा बह रहा था, वहाँ से जल मँगवाया गया और सभी ने कुछ खाकर जल पीया, इसके बाद फिर सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए।

देवीसिंह––जिस मकान का इस चिट्ठी में पता दिया गया है यदि वहाँ न जाना चाहिए तो यहाँ रहना भी मुनासिब नहीं, क्योंकि वे दगाबाज लोग इस जगह से भी बेफिक्र न होंगे। मेरी राय तो यही है कि शेरसिंह के साथ कुमार विजयगढ़ जायँ और मैं उस मकान की खोज में जाकर देखूँ कि वहाँ क्या है।

कमलिनी––आपका कहना बहुत ठीक है, मैं भी यही मुनासिब समझती हूँ, इस बीच में मुझे भी दो-एक दुश्मनों का पता लगा लेने का मौका मिलेगा, क्योंकि जहाँ तक मैं समझती हूँ, यह एक ऐसे आदमी का काम है जिसे सिवाय मेरे आप लोग नहीं जानते और न इस समय उसका नाम आप लोगों के सामने लेना ही मैं मुनासिब समझती हूँ।

कुमार––क्या नाम बताने में कोई हर्ज है?

कमलिनी––बेशक हर्ज है। हाँ, यदि मेरा अन्दाज ठीक निकला तो अवश्य उन लोगों का नाम बताऊँगी और पता भी दूँगी।

कुमार––खैर, मगर जो कुछ राय आप लोगों ने दी है उसके अनुसार चलने में तो कई दिन व्यर्थ लग जायँगे, इसलिए मेरी राय कुछ दूसरी ही है।

देवीसिंह––वह क्या?

कुमार––मैं खुद आपके साथ उस मकान की तरफ चलता हूँ जिसका पता इस चिट्ठी में दिया गया है। यदि केवल उस मकान के अन्दर रहने वाले हमारे दुश्मन हैं तो हिम्मत हारने की कोई जरूरत नहीं। इसी समय उन्हें जीत कर किशोरी को छुड़ा लाऊँगा। और यदि उन लोगों के पास फौज होगी तो जरूर मकान के बाहर टिकी हुई होगी जिसका पता लगाना कुछ कठिन न होगा। उस समय जो कुछ आप लोग राय देंगे, किया जायगा।

इसी तरह की बातचीत करने में पहर रात बीत गई। आखिर वही निश्चय ठहरा जो कुमार ने सोचा था, अर्थात् इसी समय सब कोई उस मकान की तरफ जाने के लिए मुस्तैद हुए और पहाड़ी के नीचे उतर आये। पेड़ों के साथ बागडोर से बँधे हुए घोड़े वहीं पर चर रहे थे जो अपने सवारों को देखकर हिनहिनाने लगे, जिससे जाना गया कि वे इस समय फिर सफर को तैयार हैं और पहर भर चरने और आराम करने से उनकी थकावट कम हो चुकी है। सब लोग घोड़ों पर सवार होकर वहाँ से रवाना हुए।

जो कुछ उस चिट्ठी में लिखा था, वह ठीक मालूम होने लगा, अर्थात् पूरब पाँच कोस चले जाने के बाद एक नाला मिला और उसी के किनारे-किनारे दो कोस दक्खिन जाने के बाद एक मकान की सफेदी दिखाई पड़ी। साफ मालूम होता था कि यह मकान