पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/३३

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वीरेन्द्रसिंह––दो। अब सस्ते में छूटते हो, बटुआ देने में उज्र न करो।

तेजसिंह––जब आप ही इसकी मदद पर हैं तो लाचार होकर देना ही पड़ेगा।

राजा वीरेन्द्र सिंह ने अपना खास सन्दूक मँगाया और उसमें से एक जड़ाऊ डिब्बा, जिसके अन्दर न मालूम क्या चीज थी, निकाले बिना खोले भैरोंसिंह को दे दिया। भैरोंसिंह ने इनाम पाकर सलाम किया और अपने पिता तेजसिंह की तरफ देखा। उन्हें भी लाचार होकर ऐयारी का बटुआ, जिसे वे हरदम अपने पास रखते थे, भैरोंसिंह के हवाले करना ही पड़ा।

राजा वीरेन्द्रसिंह ने भैरोंसिंह से कहा, "इनाम तो तुम पा चुके। अब बताओ, तुम्हारी दूसरी हविस क्या है जो पूरी की जाये?"

भैरोंसिंह––मेरे जाने के बाद आप यहाँ के तहखाने की सैर करेंगे। अफसोस यही है कि इसका आनन्द मुझे कुछ भी न मिलेगा।

वीरेन्द्रसिंह––खैर, इसके लिए भी हम वादा करते हैं कि जब तुम चुनारगढ़ से लौट आओगे, तब यहाँ के तहखाने की सैर करेंगे, मगर जहाँ तक हो सके, तुम जल्द लौटना।

भैरोंसिंह सलाम करके बिदा हुए, मगर दो ही चार कदम आगे बढ़े थे कि तेजसिंह ने पुकारा और कहा, "सुनो-सुनो! बटुए में से एक चीज मुझे ले लेने दो, क्योंकि वह मेरे ही काम की है।"

भैरोंसिंह––(लौटकर और बटुआ तेजसिंह के सामने रखकर) बस, अब मैं यह बटुआ न लूँगा। जिसके लोभ से मैंने बटुआ लिया, जब वही आप निकाल लेंगे तो इसमें रही क्या जायेगा?

वीरेन्द्रसिंह––नहीं जी, ले जाओ, अब तेजसिंह उसमें से कोई चीज न निकालने पायेंगे। जो चीज यह निकालना चाहते हैं तुम भी उस चीज को रखने योग्य पात्र हो!

भैरोंसिंह ने खुश होकर बटुआ उठा लिया और सलाम करने के बाद तेजी के साथ वहाँ से रवाना हो गये।

पाठक तो समझ ही गए होंगे कि इस बटुए में कौन-सी ऐसी चीज थी जिसके लिए इतनी खिंचा-खिंची हुई! खैर, शक मिटाने के लिए हम उस भेद को खोल ही देना मुनासिब समझते हैं। इस बटुए में वे ही तिलिस्मी फूल थे जो चुनारगढ़ के इलाके में तिलिस्म के अन्दर से तेजसिंह के हाथ लगे थे और जिन्हें किसी प्राचीन वैद्य ने बड़ी मेहनत से तैयार किया था।

अब हम भैरोंसिंह के चले जाने के बाद तीसरे दिन का हाल लिखते हैं। दिग्विजयसिंह अपने कमरे में मसहरी पर लेटा-लेटा न मालूम क्या-क्या सोच रहा है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है मगर अभी तक उसकी आँखों में नींद नहीं है, दरवाजे की तरफ मुँह किए हुए मालूम होता है कि वह किसी के आने की राह देख रहा है क्योंकि किसी तरह की जरा-सी भी आहट आने पर चौंक जाता है और चैतन्य होकर दरवाजे की तरफ देखने लगता है। यकायक चौखट के अन्दर पैर रखते हुए एक वृद्ध बाबाजी की सूरत दिखाई पड़ी। उनकी अवस्था अस्सी वर्ष से ज्यादा होगी, नाभि तक लम्बी दाढ़ी