सामने से एक लम्बे कद का आदमी आता हुआ दिखाई पड़ा जिसे देख कमला चौंकी और उस समय तो कमला का कलेजा बेहिसाब धड़कने लगा जब वह आदमी उन दोनों औरतों के पास आकर खड़ा हो गया और उनसे डपट कर बोला, "तुम दोनों कौन हो?" उस आदमी का चेहरा चन्द्रमा के सामने था, विमल चाँदनी उसके नक्शे को अच्छी तरह दिखा रही थी, इसीलिए कमला ने उसे तुरन्त पहचान लिया और उसे विश्वास हो गया कि वह लम्बे कद का आदमी वही है जो खँडहर वाले तहखाने के अन्दर शेरसिंह से मिलने गया था और जिसे देख उनकी अजब हालत हो गई थी तथा जिद करने पर भी उन्होंने न बताया कि यह आदमी कौन है।
कमला ने अपने धड़कते हुए कलेजे को बाएँ हाथ से दबाया और गौर से देखने लगी कि अब क्या होता है। यद्यपि कमला उन दोनों औरतों से बहुत दूर न थी और इस रात के सन्नाटे में उनकी बातचीत बखूबी सुन सकती थी, तथापि उसने अपने को बड़ी सावधानी से उस तरफ लगाया और सुनना चाहा कि दोनों औरतों और लम्बे व्यक्ति में क्या बातचीत होती है।
उस आदमी के डपटते ही ये दोनों औरतें चैतन्य होकर खड़ी हो गई और उनमें से एक ने, जो सरदार मालूम होती थी, जवाब दिया––
औरत––(अपनी कमर से खंजर निकलकर) हम लोग अपना परिचय नहीं दे सकतीं और न हमें यही पूछने से मतलब है कि तुम कौन हो?
आदमी––(हँसकर) क्या तू समझती है कि मैं तुझे नहीं पहचानता? मुझे खूब मालूम है कि तेरा नाम गौहर है। मैं तेरी सात पुश्त को जानता हूँ, मगर आजमाने के लिए पूछता था कि देखू, तू अपना सच्चा हाल मुझे कहती है या नहीं! क्या कोई अपने को भूतनाथ से छिपा सकता है?
'भूतनाथ' नाम सुनते ही वह और घबरा गई, डर से बदन काँपने लगा और खंजर उसके हाथ से गिर पड़ा। उसने मुश्किल से अपने को सम्हाला और हाथ जोड़कर बोली, "बेशक मेरा नाम गौहर है, मगर..."
भूत––तू यहाँ क्यों घूम रही है? शायद इस फिक्र में है कि इस किले में पहुँच कर आनन्दसिंह से अपना बदला ले!
गौहर––(डरी हुई आवाज से) जी हाँ।
भूत––पहले भी तो तू उन्हें फँसा चुकी थी, मगर उनका ऐयार देवीसिंह उन्हें छुड़ा ले गया। हाँ, तेरी छोटी बहिन कहाँ है?
गौहर––वह तो गया की रानी माधवी के हाथ से मारी गई।
भूत––कब?
गौहर––जब वह इन्द्रजीतसिंह को फँसाने के लिए चुनारगढ़ के जंगल में गई थी तो मैं भी अपनी छोटी बहिन को साथ लेकर आनन्दसिंह की धुन में उसी जंगल में गई हुई थी। दुष्टा माधवी ने व्यर्थ ही मेरी बहिन को मार डाला। जब वह जंगल काटा गया तो वीरेन्द्रसिंह के आदमी उसकी लाश उठाकर चुनार ले गए थे, मगर (अपनी