पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/३८

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साथिन की तरफ इशारा करके) बड़ी चालाकी से यह ऐयारा उस लाश को वहाँ से उठा लाई थी[१]

भूत––हाँ ठीक है, अच्छा तो तू इस किले में घुसना चाहती है और आनन्दसिंह की जान लिया चाहती है?

गौहर––यदि आप अप्रसन्न न हों तो।

भूत––मैं क्यों अप्रसन्न होने लगा? मुझे क्या गरज पड़ी है कि मना करूँ। जो तेरा जी चाहे वह कर। अच्छा, मैं जाता हूँ लेकिन एक दफे फिर तुझसे मिलूँगा।

वह आदमी तुरन्त चला गया और देखते-देखते नजरों से गायब हो गया। इसके बाद उन दोनों औरतों में बातचीत होने लगी।

गौहर––गिल्लन, इसकी सूरत देखते ही मेरी जान निकल गई थी। न मालूम, यह कम्बख्त इस वक्त कहाँ से आ गया।

गिल्लन––तुम्हारी तो बात ही दूसरी है, मैं ऐयारा होकर अपने को सम्हाल न सकी। देखो, अभी तक कलेजा धड़-धड़ करता है।

गौहर––मुझको तो यही डर लगा हुआ था कि कहीं यह मुझे आनन्दसिंह से बदला लेने के बारे में मना न करे।

गिल्लन––सो तो उसने न किया, मगर एक दफे मिलने के लिए कह गया है। अच्छा, अब यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं।

वे दोनों औरतें, अर्थात् गौहर तथा गिल्लन, वहाँ से चली गईं और कमला ने भी एक तरफ का रास्ता लिया। दो घण्टे के बाद कमला उस कब्रिस्तान में पहुँची जो रोहतासगढ़ के तहखाने में आने-जाने का रास्ता था। इस समय चन्द्रमा अस्त हो चुका था।

और कब्रिस्तान में भी सन्नाटा था। कमला बीच वाली कब्र के पास गई और तहखाने में जाने के लिए दरवाजा खोलने लगी, मगर खुल न सका। आधे घंटे तक वह इसी फिक्र में लगी रही, पर कोई काम न चला, लाचार उठ खड़ी हुई और कब्रिस्तान के बाहर की तरफ चली। फाटक के पास पहुँचते ही वह अटकी क्योंकि सामने की तरफ थोड़ी ही दूर पर कोई चमकती हुई चीज उसे दिखाई पड़ी जो इसी तरफ बढ़ी आ रही थी। आगे जाने पर मालूम हुआ कि यह बिजली की तरह चमकने वाली चीज एक नेजा है जो किसी औरत के हाथ में है। वह नेजा कभी-कभी तेजी के साथ चमकता है और इस सबब से दूर-दूर तक चीजें दिखाई देती हैं और कभी उसकी चमक बिल्कुल ही जाती रहती है और यह भी नहीं मालूम होता है कि नेजा या नेजे को हाथ में रखने वाली औरत कहाँ है। थोड़ी देर में वह औरत इस कब्रिस्तान के बहुत पास आ गई और नेजे की चमक ने कमला को उस औरत की सूरत-शक्ल अच्छी तरह दिखा दी। उस औरत का रंग स्याह था, सूरत डरावनी और बड़े-बड़े दो-तीन दाँत मुँह बाहर निकले हुए थे। काली साड़ी पहने हुए वह औरत पूरी राक्षसी मालूम होती थी। यद्यपि कमला ऐयारा और बहुत दिलेर थी मगर इसकी सूरत देखते ही थर-थर काँपने लगी। उसने


  1. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, पहला भाग, चौथा बयान।