बत्ती निकाल कर और बाल कर बाहर निकली। पहले उसने रोशनी के आगे हाथ की आड़ देकर चारों तरफ देखा और फिर उस कोठरी की तरफ रवाना हुई। जब कोठरी के दरवाजे पर पहुँची तो उसकी निगाह एक आदमी पर पड़ी जिसे देखते ही चौंकी और डर कर दो कदम पीछे हट गई, मगर उसकी होशियार आँखों ने तुरन्त पहचान लिया कि वह आदमी असल में मुर्दे से भी बढ़कर है अर्थात् पत्थर की एक खड़ी मूरत है जो सामने की दीवार के साथ चिपकी हुई है। आज के पहले इस कोठरी के अन्दर कामिनी नहीं आई थी, इसलिए वह हरएक तरफ अच्छी तरह गौर से देखने लगी परन्तु उसे इस बात का खटका बराबर लगा रहा कि कहीं वे चारों आदमी फिर न आ जायँ।
कामिनी को उम्मीद थी कि इस कोठरी से अन्दर वह लाश दिखाई देगी जिसे चारों आदमी उठा कर लाये थे, मगर कोई लाश दिखाई न पड़ी। आखिर उसने खयाल किया कि शायद लोग लाश की जगह मूरत को लाये हों जो सामने दीवार के साथ खड़ी है। कामिनी उस कोठरी के अन्दर घुस कर मूरत के पास जा खड़ी हुई और उसे अच्छी तरह देखने लगी। उसे बड़ा ताज्जुब हुआ जब उसने अच्छी तरह जाँच करने पर निश्चय कर लिया कि वह मूरत दीवार के साथ है, अर्थात् इस तरह से जुड़ी हुई है कि बिना टुकड़े-टुकड़े हुए किसी तरह दीवार से अलग नहीं हो सकती। कामिनी की चिन्ता और बढ़ गई। अब उसे इसमें किसी तरह का शक न रहा कि वे चारों आदमी जरूर किसी की लाश को उठा लाये थे, इस मूरत को नहीं, मगर वह लाश गई कहाँ? क्या जमीन खा गई या किसी चूने के ढेर के नीचे दबा दी गई! नहीं, मिट्टी या चूने के नीचे वह लाश दाबी नहीं गई, अगर ऐसा होता तो जरूर देखने में आता। उन लोगों ने जो कुछ किया, इसी कोठरी के अन्दर किया।
कामिनी उस मूरत के पास खड़ी देर तक सोचती रही, आखिर वहाँ से लौटी और धीरे-धीरे अपने तहखाने में आकर बैठ गई, वहाँ एक ताक (आले) पर चिराग जल रहा था इसलिए मोमबत्ती बुझाकर बिछौने पर जा लेटी और फिर सोचने लगी।
इसमें कोई शक नहीं कि वे लोग कोई लाश उठाकर लाए थे, मगर वह लाश कहाँ गई। खैर, इससे कोई मतलब नहीं, मगर अब यहाँ रहना भी कठिन हो गया, क्योंकि यहाँ कई आदमियों की आमद-रफ्त शुरू हो गई। शायद कोई मुझे देख ले, तो मुश्किल होगी। अब होशियार हो जाना चाहिए क्योंकि मुझे बहुत-कुछ काम करना है। कमला या शेरसिंह भी अभी तक न आए, अब उनसे भी मुलाकात होने की कोई उम्मीद न रही। अच्छा, दो-तीन दिन और यहाँ रहकर देखा चाहिए कि वे लोग फिर आते हैं या नहीं।
कामिनी इन सब बातों को सोच ही रही थी कि एक आवाज उसके कान में आई। उसे मालूम हुआ कि किसी औरत ने दर्दनाक आवाज में यह कहा, "क्या दुःख ही भोगने के लिए मेरा जन्म हुआ था!" यह आवाज ऐसी दर्दनाक थी कि कामिनी का कलेजा काँप गया। इस छोटी ही उम्र में वह भी बहुत तरह के दुःख भोग चुकी थी और उसका कलेजा जख्मी हो चुका था, इसलिए बर्दाश्त न कर सकी, आँखें भर आईं और आँसू की बूँदें टपाटप गिरने लगीं। फिर आवाज आई, "हाय, मौत को भी मौत आ