पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
45
 

गई!" अबकी दफे कामिनी बेतरह चौंकी और यकायक बोल उठी, "इस आवाज को तो मैं पहचानती हूँ, जरूर उसी को आवाज है!"

कामिनी उठ खड़ी हुई और सोचने लगी कि यह आवाज किधर से आई? बन्द कोठरी में आवाज आना असम्भव है, किसी खिड़की, सूराख या दीवार में दरार हुए बिना आवाज किसी तरह नहीं आ सकती। वह कोठरी में हर तरफ घूमने और देखने लगी। यकायक उसकी निगाह एक तरफ की दीवार के ऊपरी हिस्से पर जा पड़ी और वहाँ एक सूराख, जिसमें आदमी का हाथ बखूबी जा सकता था, दिखाई पड़ा। कामिनी ने सोचा कि बेशक इसी सूराख में से आवाज आई है। वह सूराख की तरफ गौर से देखने लगी, फिर आवाज आई––"हाय, न मालूम मैंने किसी का क्या बिगाड़ा है!"

अब कामिनी को विश्वास हो गया कि यह आवाज उसी सूराख में से आई है। वह बहुत ही बेचैन हुई और धीरे-धीरे कहने लगी, "बेशक यह उसी की आवाज है। हाय मेरी प्यारी बहिन किशोरी, मैं तुझे क्योंकर देखूँ और किस तरह मदद करूँ? इस कोठरी के बगल में जरूर कोई दूसरी कोठरी है जिसमें तू कैद है, मगर न मालूम उसका रास्ता किधर से है? मैं कैसे तुझ तक पहुँचूँ और इस आफत से तुझे छुड़ाऊँ? इस कोठरी की कम्बख्त संगीन दीवारें भी ऐसी मजबूत है कि मेरे उद्योग से सेंध भी नहीं लग सकती। हाय, अब मैं क्या करूँ? भला पुकार के देखूँ तो सही कि आवाज भी उसके कानों तक पहुँचती है या नहीं?"

कामिनी ने मोखे (सूराख) की तरफ मुँह करके कहा, "क्या मेरी प्यारी बहिन किशोरी की आवाज आ रही है?"

जवाब––हाँ, क्या तू कामिनी है? बहिन कामिनी, क्या तू भी मेरी ही तरह इस मकान में कैद है?

कामिनी––नहीं बहिन, मैं कैद नहीं हूँ, मगर...

कामिनी और कुछ कहा ही चाहती थी कि धमधमाहट की आवाज सुनकर रुक गई और डर कर सीढ़ी की तरफ देखने लगी। उसे मालूम हुआ कि कोई यहाँ आ रहा है।


9

गिल्लन को साथ लिये हुए बीबी गौहर रोहतासगढ़ किले के अन्दर जा पहुँची। किले के अन्दर जाने में किसी तरह का जाल न फैलाना पड़ा और न किसी तरह की कठिनाई हुई। वह बेधड़ के किले के उस फाटक पर चली आई जो शिवालय के पीछे की तरफ था और छोटी खिड़की के पास खड़ी होकर खिड़की (छोटा दरवाजा) खोलने के लिए दरबान को पुकारा जब दरबान ने पूछा, "तू कौन है?" तो उसने जवाब दिया कि "मैं शेरअलीखाँ की लड़की गौहर हूँ।"