पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/४६

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उन दिनों शेरअलीखाँ पटने का नामी सूबेदार था। यह शख्स बड़ा ही दिलेर, जमाँमर्द और बुद्धिमान था, साथ ही इसके कुछ-कुछ दगाबाज भी था, मगर इसे वह राजनीति का एक अंग मानता था। उसके इलाके भर में जो कुछ उसका रुआब था उसे कहाँ तक कहा जाये, दूर-दूर तक के आदमी उसका नाम सुनकर काँप जाते थे। उसके पास फौज तो केवल पाँच ही हजार थी मगर वह उससे पचीस हजार फौज का काम लेता था क्योंकि उसने अपने ढंग के आदमी चुन-चुन कर अपनी फौज में भरती किए थे। गौहर इसी शेरअलीखाँ की लड़की थी और वह गौहर की मौसेरी बहिन थी जो चुनारगढ़ के पास वाले जंगल में माधवी के हाथ से मारी गई थी।

शेरअलीखाँ अपनी जोरू को बहुत चाहता था और उसी तरह अपनी लड़की गौहर को भी हद से ज्यादा प्यार करता था। गौहर को दस वर्ष की छोड़कर उसकी माँ मर गई थी। माँ के ग़म में गौहर दीवानी-सी हो गई। लाचार दिल बहलाने के लिए शेरअलीखाँ ने गौहर को आजाद कर दिया और वह थोड़े से आदमियों को साथ लेकर दूर-दूर तक सैर करती फिरती थी। पाँच वर्ष तक वह इसी अवस्था में रही, इसी बीच में आजादी मिलने के कारण उसकी चाल-चलन में भी फर्क पड़ गया था। इस समय गौहर की उम्र पन्द्रह वर्ष की है। शेरअलीखाँ दिग्विजयसिंह का दिली दोस्त था और दिग्विजयसिंह भी उसका बहुत भरोसा रखता था।

गौहर का नाम सुनते ही दरबान चौंका और उसने उस अफसर को इत्तिला दी जो कई सिपाहियों को साथ लेकर फाटक की हिफाजत पर मुस्तैद था। अफसर तुरन्त फाटक पर आया और उसने पुकार कर पूछा, "आप कौन हैं?"

गौहर––मैं शेरअलीखाँ की लड़की गौहर हूँ।

अफसर––इस समय आपको संकेत बताना चाहिए।

गौहर––हाँ बताती हूँ––"जोगिया।"

'जोगिया' सुनते ही अफसर ने दरवाजा खोलने का हुक्म दे दिया और गिल्लन को साथ लिए हुए गौहर किले के अन्दर पहुँच गई। मगर गौहर बिल्कुल नहीं जानती थी कि थोड़ी ही दूर पर एक लम्बे कद का आदमी दीवार के साथ चिपका खड़ा है और उसकी बातें, जो दरबान के साथ हो रही थीं, सुन रहा है।

जब गौहर किले के अन्दर चली गई, उसके आधे घण्टे बाद एक लम्बे कद का आदमी, अिसे अब भूतनाथ कहना उचित है, उसी फाटक पर पहुँचा और दरवाजा खोलने के लिए उसने दरबान को पुकारा।

दरबान––तुम कौन हो?

भूत––मैं शेरअलीखाँ का जासूस हूँ।

दरबान––संकेत बताओ।

भूत––'जोगिया।'

दरवाजा तुरन्त खोल दिया गया और भूतनाथ भी किले के अन्दर जा पहुँचा। गौहर वही परिचय देती हुई राजमहल तक चली गई। जब उसके आने की खबर राजा दिग्विजयसिंह को दी गई, उस समय रात बहुत कम बाकी थी और दिग्विजयसिंह