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जब दोनों साधु तहखाने में पहुँचे तो वहाँ एक सिपाही को पाया और सन्दूक पर भी नजर पड़ी। एक मोमबत्ती आले पर जल रही थी। वह सिपाही इन दोनों को देख चौंका, और तलवार खींचकर सामना करने पर मुस्तैद हुआ। एक साधु ने झपटकर उसकी कलाई पकड़ ली, और दूसरे ने उसकी गर्दन में एक ऐसा घूँसा जमाया कि वह चक्कर खाकर गिर पड़ा। उसकी तलवार छीन ली गई और बेहोश कर चादर से, जो कमर में लपेटी हुई थी, उसकी मुश्कें बाँध दी गई। इसके बाद दोनों साधु उस सन्दूक की तरफ बढ़े। सन्दूक में ताला लगा हुआ न था, बल्कि एक रस्सी उसके चारों तरफ लपेटी हुई थी। रस्सी खोली गई और उस सन्दूक का पल्ला उठाया गया, एक साधु ने मोमबत्ती हाथ में ली और झाँक कर सन्दूक के अन्दर देखा, देखते ही "हाय!" कह कर जमीन पर गिर पड़ा। इसके बाद दूसरे ने देखा, और उसकी भी यही अवस्था हुई।