पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/६०

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दूसरा––नहीं।

तीसरा––सो क्यों?

दूसरा––हम लोग कामिनी को अगर पकड़ ले जाते तो मुँहमाँगा इनाम पाते, सो तो हुआ नहीं, कामिनी कोठरी के अन्दर घुस बैठी और हम लोग दरवाजा खोलकर उसे निकाल न सके, लाचार हो बाबाजी को बुलाना पड़ा, ऐसी अवस्था में जो कुछ इनाम मिल जाय वही बहुत है।

पहिला––इतना तो कहला भेजा कि हम लोगों ने कामिनी को इस तहखाने में फँसा रखा है।

दूसरा––खैर जो होगा, देखा जायगा, इस समय तो हम लोगों की जीत-ही-जीत मालूम होती है। कामिनी और किशोरी दोनों को ही हमारे मालिक की किस्मत ने इस तहखाने में कैद कर रखा है।

तीसरा––(चौंककर) जरा इधर तो देखो ये लोग कौन हैं, मालूम होता है कि इन लोगों ने हमारी बातें लीं।

खँडहर के बाहर बाएँ तरफ कुछ हट कर एक नीम का पेड़ था और उस पेड़ के नीचे एक कुआँ था। इस समय दो साधु उस कुएँ पर बैठे इन तीनों की बातें सुन रहे थे। जब उन तीनों को यह बात मालूम हुई तो डरे और उन साधुओं के पास जाकर बातचीत करने लगे––

एक आदमी––तुम दोनों यहाँ क्यों बैठे हो?

एक साधु––हमारी खुशी!

एक आदमी––अच्छा, अब हम कहते हैं कि उठो और यहाँ से चले जाओ।

एक साधु––तू है कौन, जो तेरी बात मानें?

एक आदमी––(तलवार खींचकर) यह न जानना कि साधु समझ के छोड़ दूँगा, नाहक गुस्सा मत दिलाओ।

साधु––(हँसकर) वाह रे बन्दर-घुड़की! अबे, क्या तू हम लोगों को साधु समझ रहा है?

इतना सुनते ही तीनों आदमियों ने गौर करके साधुओं को देखा और यकायक यह कहते हुए कि 'हाय, गजब हो गया, यहाँ से भागो, यहाँ से भागो' वहाँ से भागे। जहाँ तक हो सका, उन लोगों ने भागने में कसर न की। दोनों साधुओं ने उन लोगों को रोकना मुनासिब न समझा, और भागने दिया।

अब वे दोनों साधु वहाँ से उठे, और बातें करते हुए खँडहर के अन्दर घुसे। घूमते-फिरते दालान में पहुँचे और दरवाजा खोलते हुए उस तहखाने में उतर गए जिसमें कामिनी थी। इस तहखाने और दरवाजे का हाल हम ऊपर लिख आए हैं, पुनः लिखने की कोई जरूरत नहीं मालूम होती। हाँ, इतना जरूर कहेंगे कि रंग-ढंग से मालूम होता था कि ये दोनों साधु तहखाने और उसके रास्ते को बखूबी जानते हैं, नहीं तो ऐसा आदमी, जो दरवाजे का भेद न जानता हो, उस तहखाने में किसी तरह नहीं पहुँच सकता था।