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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/७

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समय बहुत ही नाजुक थी। अग्निदत्त की याद से उसे घड़ी-घड़ी में रोमांच होता था। उसके धड़कते हुए कलेजे में अजब तरह का दर्द था। और इस सोच ने उसे बिल्कुल ही निकम्मा कर रखा था कि देखें चाण्डाल अग्निदत्त के पहुँचने पर मेरी क्या दुर्दशा होती है। घण्टों की मेहनत में बड़ी कोशिश करके उसने अपने होश-हवास दुरुस्त किए और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए। उसने इस इरादे को तो पक्का कर ही लिया था कि अगर अग्निदत्त मेरे पास आवेगा, तो पत्थर पर सिर पटक कर अपनी जान दे दूँगी, मगर यह भी सोचती थी कि पत्थर पर सिर पटकने से जान नहीं जा सकती, किसी तरह खोह के बाहर निकल कर ऐसा मौका ढूँढ़ना चाहिए कि अपने को इस पहाड़ के नीचे गिराकर बखेड़ा खत्म कर दिया जाय, जिसमें हमेशा के लिए इस खिंचाखिंची से छुट्टी मिले।

किशोरी चिराग बुझाने के लिए उठी ही थी कि सामने से किसी के पैरों की चाप मालूम हुई। वह डर कर उसी तरफ देखने लगी कि यकायक अग्निदत्त पर नजर पड़ी। देखते ही वह काँप गई, ऐसा मालूम हुआ कि रगों में खून की जगह पारा भर गया। वह अपने को किसी तरह सम्हाल न सकी और जमीन पर बैठ कर रोने लगी। अग्निदत्त सामने आकर खड़ा हो गया और बोला––

अग्निदत्त––तुमने मुझको बड़ा ही धोखा दिया। अपने साथ मेरी लड़की को भी मुझसे जुदा कर दिया। अभी तक मुझे इस बात का पता न लगा कि मेरी स्त्री पर क्या बीती और वीरेन्द्रसिंह ने उसके साथ क्या सलूक किया, और यह सब तुम्हारी बदौलत हुआ।

किशोरी––फिर भी मैं कहती हूँ कि यदि मुझे छोड़ दोगे, तो मैं राजा वीरेन्द्रसिंह से कहकर तुम्हारा कसूर माफ करा दूँगी और तुम्हारी जीविका-निर्वाह के लिए भी बन्दोबस्त हो जायगा। नहीं तो याद रखना, तुम्हारी स्त्री भी...

अग्निदत्त––जो तुम कहोगी, सो मैं समझ गया। मेरी स्त्री पर चाहे जो बीते इसकी परवाह नहीं, न मुझे वीरेन्द्रसिंह का डर है। मुझे दुनिया में तुमसे बढ़कर कोई चीज नहीं दिखाई देती। देखो, तुम्हारे लिए मैंने कितना दुख भोगा और भोगने को तैयार हूँ, क्या अब भी तुमको मुझ पर तरस नहीं आता! मैं कसम खाकर कहता हूँ कि तुम्हें अपनी जान से ज्यादा प्यार करूँगा, यदि मेरी होकर रहोगी।

किशोरी––अरे दुष्ट चाण्डाल, खबरदार, फिर ऐसी बात मुँह से न निकालना!

अग्निदत्त––चाहे जो हो, मैं तुम्हें किसी तरह नहीं छोड़ सकता!

किशोरी––जान जाय तो जाय, मगर तेरी हवा अपने बदन से नहीं लगने दूँगी।

अग्निदत्त––(हँस कर) देखूँ, तू अपने को मुझसे कैसे बचाती है!

इतना कहकर अग्निदत्त किशोरी को पकड़ने के लिए आगे बढ़ा। किशोरी घबराकर उठ खड़ी हुई और दूर हट गई। थोड़ी देर तक तो इस तंग जगह में दौड़-धूप कर किशोरी ने अपने को बचाया, मगर कहाँ तक? आखिर मर्द के सामने औरत की क्या पेश आ सकती थी! अग्निदत्त को क्रोध आ गया। उसने किशोरी को पकड़ लिया और जमीन पर पटक दिया।