पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/८५

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समाधि के सामने अदब से सिर झुकाया और तब उस पर हाथ रखकर यों बोली––

"मैं उस महात्मा की समाधि पर हाथ रखकर कसम खाती हूँ जो अपना सानी नहीं रखता था, हर एक शास्त्र का पूरा पण्डित, पूरा योगी, भूत-भविष्य और वर्तमान का हाल जानने वाला और ईश्वर का सच्चा भक्त था। यद्यपि यह उसकी समाधि है। परन्तु मुझे विश्वास है कि योगिराज सजीव हैं और मेरी रक्षा का ध्यान उन्हें सदैव रहता है। (हाथ जोड़कर) योगिराज से मैं प्रार्थना करती हूँ कि मेरी प्रतिज्ञा को निबाहें। (समाधि पर हाथ रखकर) यदि नानक मुझे वह ताली दे देगा तो मैं उसके साथ कभी दगा न करूँगी, उसे अपने भाई के समान मानूँगी और उसी काम में उद्योग करूँगी जिसमें उसकी खुशी हो। मैं उस आदमी के लिए भी कसम खाती हूँ जिसने अपना नाम भूतनाथ रखा हुआ है। उसे मैं अपने सहोदर भाई के समान मानूँगी और जब तक वह मेरे साथ बुराई न करेगा, मैं उसकी भलाई करती कहूँगी।"

इतना कहकर कमलिनी समाधि से अलग हो गयी। नानक ने एक छोटी-सी डिबिया कमलिनी के हाथ में दी और उसके पैरों पर गिर पड़ा। कमलिनी ने पीठ ठोंक कर उसे उठाया और उस डिबिया को इज्जत के साथ सिर से लगाया। इसके बाद चारों आदमी फिर उस पत्थर की चट्टान पर आकर बैठ गये और बातचीत होने लगी।

भूतनाथ––(कमलिनी से) जब आपने मुझे और नानक को अपने भाई के समान मान लिया तो मुझे जो कुछ आपसे कहना हो, दिल खोलकर कह सकता हूँ और जो कुछ माँगना हो माँग सकता हूँ चाहे आप दें अथवा न दें।

कमलिनी––(मुस्कराकर) हाँ-हाँ, जो कुछ कहना हो कहो और जो माँगना हो, माँगो।

भूतनाथ––इसमें कोई सन्देह नहीं कि आपके पास एक से एक बढ़कर अनमोल चीजें होंगी, अस्तु मुझे और नानक को कोई ऐसी चीज दीजिए जो समय पर काम आये और दुश्मनों को धमकाने और उन पर फतह पाने के लिए बेनजीर हो।

कमलिनी––इसके कहने की तो कोई जरूरत न थी, मैं स्वयं चाहती थी कि तुम दोनों को कोई अनमोल वस्तु दूँ, खैर ठहरो, मैं अभी ला देती हूँ।

इतना कह कर कमलिनी उठी और चश्मे के जल में कूद पड़ी। उस जगह जल बहुत गहरा था, इसलिए मालूम न हुआ कि वह कहाँ चली गयी। कमलिनी के इस काम ने सभी को ताज्जुब में डाल दिया और तीनों आदमी टकटकी बाँधकर उसी तरफ देखने लगे।

आधे घण्टे बाद कमलिनी जल के बाहर निकली। उसके एक हाथ में छोटी-सी कपड़े की गठरी और दूसरे हाथ में लोहे की जंजीर थी। यद्यपि कमलिनी जल में से निकली थी और उसके कपड़े गीले हो रहे थे, तथापि उस कपड़े की गठरी पर जल ने कुछ भी असर न किया था, जिसे कमलिनी लाई थी।

कमलिनी ने कपड़े की गठरी पत्थर की चट्टान पर रख दी और लोहे की जंजीर भूतनाथ के हाथ में देकर बोली, "इसे तुम दोनों आदमी मिलकर खींचो।" उस जंजीर के साथ लोहे का एक छोटा-सा मगर हलका सन्दूक बँधा हुआ था, जिसे भूतनाथ और