पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
84
 

तारा––(कुछ सोचकर) हाँ-हाँ, ठीक है, अब याद आया। तो क्या वह यही जगह है?

कमलिनी––हाँ, यही जगह है।

तारा––मगर तुम तो इस तरह घोड़ा फेंके चली आयीं, जैसे कई दफे जाने-आने के कारण यहाँ का रास्ता तुम्हें बखूबी याद हो।

कमलिनी––बेशक मैं यहाँ कई दफे आ चुकी हूँ। बल्कि नानक को इस ठिकाने का पता पहले मैंने ही बताया था, और यहाँ का कुछ भेद भी कहा था।

तारा––अफसोस, इस जगह का भेद तुमने आज तक मुझसे कुछ नहीं कहा।

कमलिनी––यद्यपि तू ऐयारा है और मैं तुझे चाहती हूँ, परन्तु तिलिस्मी कायदे के मुताबिक मेरे भेदों को तू नहीं जान सकती।

तारा––सो तो मैं जानती हूँ मगर अफसोस इस बात का है कि मुझसे तो तुमने छिपाया और नानक को यहाँ का भेद बता दिया। न मालूम, नानक की कौन-सी बात पर तुम रीझ गई हो?

कमलिनी––(कुछ हँसकर और तारा के गाल पर धीरे से चपत मारकर) बदमाश कहीं की, मैं नानक पर क्यों रीझने लगी?

तारा––(झुँझलाकर) तो फिर ऐसा क्यों किया?

कमलिनी––अरे, उससे उस कोठरी की ताली जो लेनी है, जिसमें खून से लिखी हुई किताब रखी है।

तारा––तो फिर ताली लेने के पहले ही यहाँ का भेद उसे क्यों बता दिया? अगर वह ताली न दे तब?

कमलिनी––ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि भूतनाथ ने मेरी दिलजमई कर दी है और वह भूतनाथ के कब्जे में है।

"हाँ-हाँ, वह मेरे कब्जे में है––" उसी समय यह आवाज पेड़ों के झुरमुट में से, जो कमलिनी के पीछे की तरफ था, आई और कमलिनी ने फिर कर देखा तो भूतनाथ की सूरत दिखाई पड़ी।

कमलिनी––अजी आओ भूतनाथ, तुम कहाँ थे? मैं बड़ी देर से यहाँ बैठी हूँ, नानक कहाँ है?

बात की बात में नानक भी वहाँ आ पहुँचा और कमलिनी को सलाम करके खड़ा हो गया।

कमलिनी––कहो जी नानकप्रसाद, अब वादा पूरा करने में क्या देर है?

नानक––कुछ देर नहीं। मैं तैयार हूँ, परन्तु आप भी अपना वादा पूरा कीजिये और समाधि पर हाथ रखकर कसम खाइये।

कमलिनी––हाँ-हाँ, लो, मैं अपना वादा पूरा करती हूँ।

भूतनाथ––मेरा भी ध्यान रखना।

कमलिनी––अवश्य।

कमलिनी उठी और समाधि के पास जाकर खड़ी हो गयी। पहले तो उसने

च० स०-2-5