पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/९२

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और सवेरा होने तक तेजी के साथ बराबर चलता गया। जिस समय आसमान पर सुबह की सफेदी फैल रही थी, घोड़े ने यहाँ तक हिम्मत हार दी कि दस कदम भी चलना उसके लिए कठिन हो गया। लाचार भूतनाथ घोड़े के नीचे उतरा और उस औरत की भी उतार लिया। घोड़ा उसी समय जमीन पर गिर पड़ा, मगर भूतनाथ ने उसकी कुछ परवाह न की।

कमर से चादर खोल उसने औरत की गठरी बाँधी और पीठ पर लाद आगे का रास्ता लिया।

पहर भर चलते जाने बाद भूतनाथ एक ऐसी पहाड़ी के नीचे पहुँचा जिसकी ऊँचाई बहुत ज्यादा न थी मगर खुशनुमा और सायेदार दरख्त पहाड़ी के ऊपर तथा उसकी तराई में बहुत थे। पहाड़ी की चोटी पर सलई का एक ऊँचा पेड़ था और उसके ऊपर लम्बी काँड़ी में लगा हुआ एक लाल फरहरा (ध्वजा) दूर से दिखाई दे रहा था। यह निशान कमलिनी का लगाया हुआ था। भूतनाथ, तारा और नानक से मिलने के लिए कमलिनी ने एक यह जगह भी मुकर्रर की थी और निश्चय कर रखा था कि जब इन चारों में किसी को किसी से मिलने की आवश्यकता पड़े तो वह इसी जगह आवे और यदि किसी से मुलाकात न हो, इस झंडे को झुका हुआ देखे तो तुरन्त इस पहाड़ी के नीचे आवे और नियत स्थान पर अपने साथी को ढूँढ़े। यह फरहरा बहुत दूर से दिखाई देता था और यह पहाड़ी रोहतासगढ़ और गयाजी के बीच में पड़ती थी।

उस औरत को पीठ पर लादे हुए भूतनाथ पहाड़ी के ऊपर चढ़ने लगा। लगभग दो सौ कदम जाने के बाद रास्ता छोड़कर दाहिनी तरफ घूमा जिधर छोटे-छोटे जंगली पेड़ों की गुंजान झाड़ी दूर तक चली गई थी। उस झाड़ी में आदमी बखूबी छिप सकता था अर्थात् उस झाड़ी के पेड़ यद्यपि छोटे थे परन्तु आदमी की ऊँचाई से उन पेड़ों की ऊँचाई कुछ ज्यादा थी। भूतनाथ दोनों हाथ से पेड़ों को हटाता हुआ कुछ दूर तक चला गया। आखिर उसे एक गुफा मिली जिसका मुँह जंगली लताओं ने अच्छी तरह ढाँक रखा था। भूतनाथ उस गुफा के अन्दर चला गया और अपना बोझ अर्थात् उस औरत को गुफा के अन्दर छोड़ बाहर निकल आया। इसके बाद पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गया और सलई पेड़ पर चढ़कर लाल फरहरे (झण्डे) को झुकाने का इरादा किया परन्तु उसी समय सलई के पेड़ पर चढ़ी हुई कमलिनी उसे दिखाई पड़ी जो फरहरा झुकाने का उद्योग कर रही थी। इस समय भी कमलिनी उसी राक्षसी के भेष में थी जैसा कि ऊपर के बयानों में लिख आए हैं। भूतनाथ ने कमलिनी को पहचाना और उसने भी भूतनाथ को देखा। कमलिनी पेड़ के नीचे उतर आई और बोली––

कमलिनी––खूब पहुँचे, मैं तुमसे मिला चाहती थी, इसीलिए झण्डा झुकाने का उद्योग कर रही थी।

भूतनाथ––मैं खुद तुमसे मिलना चाहता था, इसीलिए यहाँ तक आया हूँ। यदि इस समय तुम न मिलती तो मैं इस पेड़ पर चढ़कर फरहरा झुकाता।

कमलिनी––कहो, क्या बात है और कौन-सी जरूरत आ पड़ी?

भूतनाथ––पहले तुम कहो कि मुझसे मिलने की क्या आवश्यकता थी?