पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१०८

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पहाड़ी है जिसका फैलाव सैकड़ों कोस तक चला गया है। इस जगह से जहाँ इस समय मायारानी खड़ी होकर पहाड़ी के दिलचस्प सिलसिले को बड़े गौर से देख रही है राजा वीरेन्द्रसिंह की राजधानी नौगढ़ बहुत दूर नहीं है परन्तु यह जगह नौगढ़ की हद से बिल्कुल बाहर है।

धूप बहुत तेज थी और भूख-प्यास ने भी सता रक्खा था, इसलिए दारोगा ने मायारानी से कहा, "मैं समझता हूँ कि इस पहाड़ पर चढ़ने की थकावट अब मिट गई होगी, यहाँ देर तक खड़े रहने से काम न चलेगा क्योंकि अभी हम लोगों को कुछ दूर और चलना है और भूख-प्यास से जी बेचैन हो रहा है।"

मायारानी—क्या अभी हम लोगों को और आगे जाना पड़ेगा? आपने तो इसी पहाड़ी पर इन्द्रदेव का घर बताया था?

दारोगा-ठीक है मगर उसका मतलब यह न था कि पहाड़ पर चढ़ने के साथ ही कोई मकान मिल जायगा।

मायारानी-खैर, चलिए। अब कितनी देर में ठिकाने पर पहुंचने की आशा कर सकती हूँ?

दारोगा-अगर तेजी के साथ चलें तो घण्टे-भर में।

मायारानी-ओफ!

आगे-आगे दारोगा और पीछे-पीछे मायारानी दोनों आगे की तरफ बढ़े। ज्योंज्यों आगे बढ़ते जाते थे, जमीन ऊंची मिलती जाती थी और चढ़ाव चढ़ने के कारण मायारानी का दम फूल रहा था। वह थोड़ी-थोड़ी दूर पर खड़ी होकर दम लेती थी और फिर दारोगा के पीछे-पीछे चल पड़ती थी, यहां तक कि दोनों एक गुफा के मुँह पर जा पहुंचे जिसके अन्दर खड़े होकर बराबर दो आदमी बखूबी जा सकते थे। बाबाजी ने मायारानी से कहा कि "क्या हर्ज है, मैं चलने को तैयार हूँ मगर जरा दम ले लूं।"

गुफा के दोनों तरफ चौड़े-चौड़े दो पत्थर थे जिनमें से एक पर दारोगा और दसरे पर मायारानी बैठ गई। इन दोनों को बैठे अभी ज्यादा देर नहीं हुई थी कि गुफा के अन्दर से एक आदमी निकला जिसने पहली निगाह में मायारानी को और दूसरी निगाह में दारोगा को देखा। मायारानी को देखकर उसे ताज्जुब हुआ मगर जब दारोगा को देखा तो झपट कर उसके पैरों पर गिर पड़ा और बोला, "आश्चर्य है कि आज मायारानी को लेकर आप यहाँ आये हैं!"

दारोगा-हाँ, एक भारी आवश्यकता पड़ जाने के कारण ऐसा करना पड़ा। कहो, तुम अच्छे तो हो? बहुत दिन पर दिखाई दिए।

आदमी-जी, आपकी कृपा से बहुत अच्छा हूँ, हाल ही में जब आप यहाँ आये थे तो मैं एक जरूरी काम के लिए भेजा गया था इसी से आपके दर्शन न कर सका, कल जब मैं लौटकर आया तो मालूम हुआ कि बाबाजी आये थे, पर एक ही दिन रहकर चले गये (आश्चर्य के ढंग से) मगर यह नाक पर पट्टी कैसे बँधी है?

दारोगा-कल लड़ाई में एक आदमी ने बेकसूर मुझे जख्मी किया, इसी से पट्टी बांधने की आवश्यकता हुई!