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आदमी-(कोध में आकर) किसकी मौत आई है जिसने हम लोगों के होते आपके साथ ऐसा किया! जरा नाम तो बताइये!
दारोगा—अब आया हूँ तो अवश्य सब-कुछ कहूँगा, पहले यह बताओ कि इस समय तुम जाते कहाँ हो?
आदमी-एक काम के लिए महाराज ने भेजा है, संध्या होने के पहले ही लौट आऊँगा, यदि आज्ञा हो तो महाराज के पास जाकर आपके आने का संवाद दूँ?
दारोगा-नहीं-नहीं, इसकी आवश्यकता नहीं है, मैं चला जाऊँगा, तुम जाओ, जब लौटो तो रात को बातचीत होगी।
आदमी-जो आज्ञा।
दारोगा का पैर छूकर वह आदमी वहाँ से तेजी के साथ चला गया और इसके बाद मायारानी ने दारोगा से कहा, "अफसोस, यहाँ तक नौबत आ पहुँची, कि अब हर एक आदमी बारह परदे के अन्दर रहने वाली मायारानी को खुल्लमखुल्ला देख सकता है जैसा कि अभी इस गैर आदमी ने देखा।"
दारोगा-तुझे इस बात का अफसोस न करना चाहिए। समय ने जब तुझे अपने घर से बाहर कर दिया, रिआया से बदतर बना दिया, हुकूमत छीन कर बेकार कर दिया बल्कि यों कहना चाहिए कि वास्तव में छिपकर जान बचाने लायक कर दिया, तो पर्दे और इज्जत का खयाल कैसा! किस जात-बिरादरी के वास्ते? क्या तुझे आशा है कि राजा गोपालसिंह अब तुझे अपनी बनाकर रखेगा? कभी नहीं। फिर लज्जा का ढकोसला क्यों? हाँ समय ने अगर तेरा नसीब चमकाया और तू हम लोगों की मदद से गोपालसिंह वीरेन्द्रसिंह तथा उसके लड़कों पर फतह पाकर पुनः तिलिस्म की रानी हो गई तो तुझे उस समय आज की निर्लज्जता की परवाह न रहेगी क्योंकि रुपये वालों का ऐब जमाना नहीं देखता, रुपये वाले की खातिर में कमी नहीं होती, रुपये वाले को कोई दोष नहीं लगता, और रुपये वालों की पहली अवस्था पर कोई ध्यान नहीं देता। फिर इसके लिए सोचने-विचारने से क्या फायदा? तू आज से अपने को मर्द समझ ले और मर्दो की ही तरह जो कुछ मैं सलाह दूँ वह कर।
मायारानी--बात तो आपने ठीक कही, वास्तव में ऐसा ही है! अब आज से मैं ऐसी तुच्छ बातों पर ध्यान न दूँगी। अच्छा, जहाँ चलना हो चलिए, मैं वखूबी आराम कर चुकी, हाँ यह तो बताइये कि वह आदमी कौन था और उसने मुझे पहचाना कैसे?
दारोगा—वह इन्द्रदेव का ऐयार है, मुझसे मिलने के लिए बराबर आया करता था, यही सबब है कि तुझे पहचानता है, और फिर ऐयारों से यह बात कुछ दूर नहीं है कि तुझ-सी मशहूर को पहचान लिया।
इसके बाद दारोगा उठ खड़ा हुआ और मायारानी को अपने पीछे-पीछे आने के लिए कहकर गुफा के अन्दर रवाना हुआ।