मायारानी भी इन्द्रदेव की आज्ञानुसार अपने कमरे में चली गई और इन्द्रदेव तथा दारोगा अकेले ही रह गए।
इन्द्रदेव-आप देखते हैं कि जिसने आप के साथ बिना कारण के बुराई की थी उसे उस बुराई का बदला ईश्वर ने कुछ विशेषता के साथ दे दिया। आपको भी इसी तरह विचारना चाहिए कि क्या राजा वीरेन्द्रसिंह और राजा गोपालसिंह के साथ, जो बड़े नेक और बिल्कुल बेकसूर हैं, बुराई करने वाला अपनी सजा को न पहुँचेगा?
दारोगा-निःसन्देह आपका कहना ठीक है, परन्तु ...
दारोगा 'परन्तु' से आगे कहने भी न पाया था कि इन्द्रदेव फिर जोश में आ गया और कड़ी निगाह से बाबाजी की तरफ देख के बोला
इन्द्रदेव-- मैं इतना बक गया मगर अभी तक 'परन्तु' का डेरा आपके दिल से न निकला। वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों से उलझने की इच्छा आपकी अभी तक बनी ही है। खैर जो आपके जी में आवे की कीजिए मगर मुझसे इस बारे में किसी तरह की आशा न रखिए। आप चाहे मुझे कोई भारी वस्तु समझे बैठे हों परन्तु मैं अपने को उन लोगों के मुकाबले में एक भुनगे के बराबर भी नहीं समझता। मुझे अच्छी तरह विश्वास है कि जहाँ हवा भी नहीं घुस सकती वहाँ वीरेन्द्रसिंह के ऐयार पहुँचते हैं। (बगल से एक चिट्ठी निकाल कर और दारोगा की तरफ बढ़ाकर) लीजिये पढ़िए और सुनकर चौंक जाइए कि प्रातःकाल जब मैं सोकर उठा तो इस पत्र को अपने गले के साथ ताबीज की तरह बँधा हुआ देखा। ओफ, जिसके ऐसे-ऐसे ऐयार ताबेदार हैं उसके साथ उलझने की नीयत रखने वाला पागल या यमराज का मेहमान नहीं तो और क्या समझा जायगा!
बाबाजी ने डरते-डरते वह पत्र इन्द्रदेव के हाथ से ले लिया और पढ़ा, यह लिखा हुआ था
"इन्द्रदेव--
"तुम यह मत समझो कि ऐसे गुप्त स्थान में रहकर हम लोगों की नजरों से भी छिपे हए हो। नहीं-नहीं, ऐसा नहीं। हम लोग तुम्हें अच्छी तरह जानते हैं और हमें यह भी मालूम है कि तुम अच्छे ऐयार, बुद्धिमान और वीर पुरुष हो, परन्तु बुराई करना तो दूर रहा, हम लोग बिना कारण या बिना बुलाए किसी के सामने भी कभी नहीं जाते। इसी से हमारा और तुम्हारा सामना अभी तक नहीं हुआ। तुम यह मत समझो कि तुम बिल्कुल बेकसूर हो, कम्बख्त दारोगा को रोहतासगढ़ के कैदखाने से निकाल लाने का कसूर तुम्हारी गर्दन पर है, मगर तुमने यह बड़ी बुद्धिमानी की कि हमारे किसी आदमी को दुःख नहीं दिया और इसी से तुम अभी तक बचे हुए हो। हम तुम्हें मुबारकबाद देते हैं कि श्री तेजसिंहजी ने तुम्हारा कसूर जो हरामखोर और विश्वासघाती दारोगा को कैद से छुड़ाने के विषय में था माफ किया। इसका कारण यही था कि वह तुम्हारा गुरुभाई है, अतएव उसकी कुछ न कुछ मदद करना तुम्हें उचित ही था, चाहे वह नमकहराम तुम्हारा गुरुभाई कहलाने योग्य नहीं है। खैर, तुमने जो कुछ किया अच्छा किया, मगर इस समय तुम्हें चेताया जाता है कि आज से मायारानी, दारोगा या और किसी