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मायारानी―ठीक है, मगर जब मैं दौलत से उसका घर भर दूँगी तो वह बहुत ही खुश होगा और एक जबर्दस्त फौज तैयार करके हमारा साथ देगा। मैं आपसे कह चुकी हूँ कि इस अवस्था में भी दौलत की मुझे कमी नहीं है।
दारोगा―हाँ, मुझे याद है, तुमने शिवगढ़ी के बारे में कहा था, अच्छा तो अब विलम्ब करने की आवश्ललकता ही क्या है? (चौंककर) हैं, यह क्या! (हाथ का इशारा करके) वह कौन है जो सामने की झाड़ी में से निकलकर इसी तरफ आ रहा है! शिवदत्त की तरह मालूम पड़ता है! (कुछ रुककर) बेशक, शिवदत्त ही तो है! हाँ देखो तो, वह अकेला नहीं है, उसके पीछे उसी झाड़ी में से और भी कई आदमी निकल रहे हैं।
मायारानी ने भी चौंककर उस तरफ देखा और हँसती हुई उठ खड़ी हुई।