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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१२४

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चन्द्रकान्ता सन्तति
ग्यारहवां भाग
1

अब हम अपने पाठकों को पुनः कमलिनी के तिलिस्मी मकान की तरफ ले चलते हैं जहाँ बेचारी तारा को बदहवास और घबराई हुई छोड़ आये हैं।

हम उस बयान में लिख चुके हैं कि छत के ऊपर जो पुतली थी उसे तेजी के साथ नाचते हुए देखकर तारा घबरा गई और बदहवास होकर कमलिनी को याद करने लगी, इसका सबब यह था कि यद्यपि बेचारी तारा उस तिलिस्मी मकान का पूरा-पूरा हाल नहीं जानती थी मगर फिर भी बहुत से भेद उसे मालूम थे और कमलिनी से सुन चुकी थी कि जब इस मकान पर कोई आफत आने वाली होगी तब वह पुतली (जिसके नाचने का हाल लिखा जा चुका है) तेजी के साथ घूमने लगेगी, उस समय समझना चाहिए कि इस मकान में रहने वालों की कुशल नहीं है। यही सबब था कि तारा बदहवास होकर इधर-उधर देखने लगी और उसकी अवस्था देखकर किशोरी और कामिनी को भी निश्चय हो गया कि बदकिस्मती ने अभी तक हम लोगों का पीछा नहीं छोड़ा और अब यहाँ भी कोई नया गुल खिलना चाहता है।

जिस समय तारा घबरा कर इधर-उधर देख रही थी, उसकी निगाह यकायक पूरब की तरफ जा पड़ी जिधर दूर तक साफ मैदान था। तारा ने देखा कि लगभग आध कोस की दूरी पर सैकड़ों आदमी दिखाई दे रहे हैं और वे लोग तेजी के साथ तारा के इसी मकान की ओर बढ़े चले आ रहे हैं। इसी के साथ ही साथ तारा की तेज निगाह ने यह भी बता दिया कि वे लोग जिनकी गिनती चार सौ से कम न होगी, या तो फौजी सिपाही हैं या लड़ाई के फन में होशियार लुटेरों का कोई गिरोह है जो दुश्मनी के साथ थोड़ी ही देर में इस मकान को घेर कर उपद्रव मचाना चाहता है। इसके बाद तारा की निगाह तालाब पर पड़ी जिस पर उसे पूरा-पूरा भरोसा था और जानती थी कि इस जल को तैर कर कोई भी इस मकान में घुस आने का दावा नहीं कर सकता, मगर अफसोस इस समय तालाब की अवस्था भी बदली हुई थी अर्थात् उसमें का जल तेजी के साथ कम हो रहा था और लोहे की जालियाँ, जाल या फन्दे, जो जल के अन्दर छिपे हुए थे, अब