पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१४

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"इस छेद में हाथ डाल के देखो, क्या अनूठी चीज है।"

कुँवर आनन्दसिंह ने बिना सोचे-विचारे उस छेद में हाथ डाल दिया, मगर फिर हा निकाल न सके। सन्दूक के अन्दर हाथ जाते ही मानो लोहे की हथकड़ी पड़ गई जो किसी तरह हाथ बाहर निकालने की इजाजत नहीं देती थी। कुमार ने झक कर सन्दूक नीचे की तरफ देखा तो मालूम हुआ कि सन्दूक जमीन से अलग नहीं है और इसलिए उसे किसी तरह खिसका भी नहीं सकते थे।


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कुँवर आनन्दसिंह के जाने के बाद इन्द्रजीतसिंह देर तक उनके आने की राह देखते रहे। जैसे-जैसे देर होती थी, जी बेचैन होता जाता था। यहाँ तक कि तमाम बीत गई, सवेरा हो गया, और पूरब तरफ से सूर्य भगवान दर्शन देकर धीरे-धीरे आसमान पर चढ़ने लगे। जब पहर भर से ज्यादा दिन चढ़ गया, तब इन्द्रजीतसिंह नदी बेताब हुए और उन्हें निश्चय हो गया कि आनन्दसिंह जरूर किसी आफत में फंस गये।

कुँवर इन्द्रजीतसिंह सोच ही रहे थे कि स्वयं चल के आनन्दसिंह का पता लगाना कि इतने ही में लाड़िली को साथ लिए हुए कमलिनी वहाँ आ पहुँची। इन्हें देख की बेचैनी कुछ कम हुई और आशा की सूरत दिखाई देने लगी। कमलिनी ने जब कुमार को उस जगह अकेले और उदास देखा तो उसे ताज्जुब हुआ, मगर वह बुध्दिमान औरत तुरत ही समझ गई कि इनके छोटे भाई आनन्दसिंह इनके साथ नहीं दिखाई देते जरूर वे किसी मुसीबत में पड़ गए हैं, और ऐसा होना कोई ताज्जुब की बात क्योंकि यह तिलिस्म का मौका है, और यहाँ का रहने वाला थोड़ी भूल में तकलीफ उठा सकता है।

कमलिनी ने कुँवर इन्द्रजीतसिंह से उदासी का कारण और कुंअर आनन्दसिंह के का सबब पूछा, जिसके जवाब में इन्द्रजीतसिंह ने जो कुछ हुआ था, बयान करके कहा कि "आनन्द को गए हुए नौ घंटे के लगभग हो गये।"

समय कोई लाड़िली की सूरत गौर से देखता तो बेशक समझ जाता कि आनन्दसिंह का हाल सुनकर उसको हद से ज्यादा रंज हुआ है। ताज्जुब नहीं कि कम और इन्द्रजीतसिंह भी उसके दिल की हालत जान गये हों, क्योंकि वह अपनी आंखों को डबडबाने और आंसू के निकलने को बड़े परिश्रमपूर्वक रोक रही थी। यद्यपि उसे निश्चय था कि दोनों कुमार इस तिलिस्म को अवश्य तोड़ेंगे, तथापि उसका दिल दख गया था। कौन ऐसा है जो अपने प्यारे पर आई हुई मुसीबत का हाल सुनकर बेचैन न हो?

कमलिनी-(सब बातें सुनकर) किसी का आना ताज्जुब नहीं है, हाँ, किसी