पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१५

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औरत का आना बेशक ताज्जुब है, क्योंकि (इन्द्रजीतसिंह की तरफ इशारा करके) आप कहते हैं कि एक औरत के रोने की आवाज आई थी।

लाड़ली-ठीक है, जहाँ तक मैं समझती हूँ सिवाय तुम्हारे, मायारानी के और मेरे किसी चौथी औरत को यहां आने का रास्ता मालूम नहीं है, हाँ, मर्दो में कई जरूर ऐसे हैं, जो यहाँ आ सकते हैं।

कमलिनी-मगर इस देवमन्दिर के अन्दर हम लोगों के अतिरिक्त राजा गोपालसिंह के सिवाय और कोई भी नहीं आ सकता। खैर, इन सब बातों को जाने दो, अब यहाँ से चलकर कुँवर साहब का पता लगाना बहुत जरूरी है। यद्यपि यहाँ किसी दुश्मन का आना बहुत कठिन है, तथापि खुटका लगा ही रहता है। जब दोनों कुमारों को मायारानी के कैदखाने से छुड़ाकर हम लोग सुरंग ही सुरंग तिलिस्मी बाग से बाहर हो रहे थे, तो उस हरामजादे के आ पहुँचने की कौन उम्मीद थी, जिसने कुमार को जख्मी किया था! इसी तरह कौन ठिकाना यहाँ भी कोई दुष्ट आ पहुँचा हो!

आखिर कुँवर आनन्दसिंह को खोजने के लिए तीनों वहाँ से रवाना हुए और देवमन्दिर के नीचे उतर उसी तरफ चले जिधर आनन्दसिंह गये थे। जब एक मकान के दरवाजे पर पहुँचे तो कमलिनी रुकी और बड़े गौर से उस दरवाजे को जो बन्द था, देखने लगी। इसके बाद फिर आगे बढ़ी, दूसरे मकान के दरवाजे पर पहुँच कर उसे भी गौर से देखा और सिर हिलाती हुई फिर आगे बढ़ी। इसी तरह कुँअर इन्द्रजीतसिंह और लाड़िली को साथ लिए हए, कमलिनी सात-आठ मकानों के दरवाजे पर गई। हर एक मकान का दरवाजा बन्द था और हर एक दरवाजे को कमलिनी ने गौर से देखा लेकिन कुछ काम न चला, मगर जब उस मकान के दरवाजे पर पहुँची, जिसमें कुँवर आनन्दसिंह गये थे तो रुककर मामूली तौर पर उसके दरवाजे को भी बड़े गौर से देखने लगी और थोड़ी ही देर में बोल उठी, "वेशक कुँवर आनन्दसिंह इसी मकान के अन्दर हैं। (उँगली से दरवाजे के ऊपर वाले चौखटे की तरफ इशारा करके) देखिये, यह स्याह पत्थर की तीन खूटियाँ नीचे की तरफ झुक गई हैं।"

कुमार-इन खूटियों से क्या मतलब है?

कमलिनी-इस मकान के अन्दर जितने आदमी जायेंगे, उतनी खूटियाँ नीचे की तरफ झुक जायँगी।

कुमार-(ऊपर वाले चौखटे की तरफ इशारा करके) ऊपर कुल बारह खूटियाँ हैं, मान लिया जाय कि बारहों खंटियाँ उस समय झुक जायेंगी, जब बारह आदमी इस मकान के अन्दर जा पहुँचेंगे, मगर जब बारह से ज्यादा आदमी इस मकान के अन्दर जायेंगे, तब क्या होगा?

कमलिनी-बारह से ज्यादा आदमी इस मकान के अन्दर जा ही नहीं सकते! तिलिस्मी बातों में किसी की जबर्दस्ती नहीं चल सकती।

कुमार-ठीक है, मगर तुमने यह कैसे जाना कि आनन्दसिंह इसी मकान के अन्दर हैं?

कमलिनी–सिर्फ अन्दाज से समझती हूँ कि आनन्दसिंह इसी मकान में होंगे,