पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
139
 


गई और तीसरा दिन आ पहुँचा। आज दुश्मनों का मनोरथ पूरा हुआ अर्थात् उन्होंने तालाव को दो तरफ से बखूबी भर दिया और उस मकान में आ पहुँचे।

लौंडिया और नौकरों की इतनी हिम्मत कहां कि सैकड़ों दुश्मनों का मुकाबला करते। वे लोग चुपचाप अलग हो गये और अपनी तथा अपने मालिक की बदकिस्मती पर विचार करते रहे, जिस पर भी कई बेचारे दुश्मनों के हाथों से मारे गये। दुश्मनों ने मनमानी लूट मचाई और जिसने जो पाया अपने बाप दादे का माल समझ के हथिया लिया। कम कीमत की चीजें या ऐसी चीजें जो वे लोग अपने साथ ले जाना पसन्द नहीं करते थे तोड़ फोड़ बिगाड़ या जलाकर सत्यानाश कर दी गईं और घण्टे ही भर में ऐसी सफाई कर दी गई मानो उन मकान में कोई बसता ही न था या कोई चीज वहाँ थी ही नहीं। इस काम के बाद किशोरी, कामिनी और तारा की खोज शुरू हुई क्योंकि दुष्टों ने जब उस तीनों को वहाँ न पाया तो उन्हें आश्चर्य हुआ और वे इस फिक्र में हुए कि भगवानी से उन तीनों का हाल पूछना चाहिए मगर भगवानी वहाँ कहाँ, वह तो अपना काम करके निकल भागी और ऐसी गायब हुई कि किसी को कुछ गुमान तक न हुआ। हाय, बेचारी किशोरी, कामिनी और तारा का हाल किसीको भी मालूम नहीं, कोई भी नहीं जानता कि वे बेचारियाँ कहाँ और किस आफत में पड़ी हैं या कई दिनों तक दाना पानी न मिलने के कारण जीती भी हैं या मर गईं। उनकी लौंडियों और नौकरों को भी इसका पता नहीं, इसी से वे लोग अपनी जान लेकर जिस तरफ भाग सके भाग गये और इस तिलिस्मी मकान पर दुश्मनों को पूरा-पूरा कब्जा करने दिया, क्योंकि इतने आदमियों का मुकाबला करके जान देना दूसरे उद्योग का भी रास्ता रोकना था।


4


पाठक महाशय, अब आप यह जानना चाहते होंगे कि हरामजादी भगवनिया के मेल से जो दुश्मन लोग इस मकान पर चढ़ आये, वे लोग शिवदत्त, माधवी और मनोरमा को छुड़ाने की नीयत से आये थे या इन तीनों के छूटकर निकल जाने का हाल उन्हें मालूम हो चुका था और वे लोग इस समय केवल किशोरी, कामिनी और तारा को गिरफ्तार करने आये थे?

नहीं, इस समय दुश्मन यह नहीं जानते थे कि इस मकान में कोई सुरंग है और भगवानी की मदद से उसी सुरंग की राह राजा शिवदत्त वगैरह बाहर हो गये। भगवानी ने जब उन लोगों को खबर पहुँचाई थी तो यही कहा था कि तुम्हारा मालिक इस मकान में कैद है, तुम जिस तरह बने उसे छुड़ा लो और इसके बाद जो कुछ उन लोगों ने किया वह बहुत बुद्धिमानी से किया। तालाब सुखाने के लिए सुरंग खोदने में उन्हें बहुत दिन मेहनत करनी पड़ी, इस बीच में भगवानी भी उन लोगों से मिलती रही मगर उसने यह नहीं कहा कि शिवदत्त को छुड़ाने के लिए मैं भी उद्योग कर रही हूँ,