से बाहर हो गया। माधवी और मनोरमा उस मकान के अन्दर ही रह गई।
अब सवेरा हो चुका था। पूरब तरफ आसमान पर भगवान सूर्यदेव का लाल पेशखेमा दिखाई देने लगा। शिवदत्त मैदान में खड़ा हो गया और खुशी के मारे उसकी जयजयकार करते उसके सिपाहियों ने चारों तरफ से उसे घेर लिया तथा यह सुनने के लिए उत्सुक होने लगे कि देखें अब हमारी तारीफ में हमारे राजा साहब क्या कहते हैं।
पर इसी समय पूरब की तरफ से बाजे की आवाज इन लोगों के कानों में पहुँची। सिपाहियों के साथ-साथ शिवदत्त भी चौकन्ना हो गया और गौर के साथ पूरब की तरफ देखता हुआ बोला, "यह तो फौजी बाजे की आवाज है। वह देखो इसकी गत साफ कहे देती है कि राजा वीरेन्द्रसिंह की फौज आ रही है, क्योंकि वीरेन्द्रसिंह जब चुनार की गद्दी पर बैठे थे तो तेजसिंह ने अपने फौजी बाजे वालों के लिए यह खास गत तैयार की थी। तब से उनकी फौज में प्रायः यह गत बजाई जाती है। मैं इसे अच्छी तरह जानता हूँ। देखो वह गर्द भी दिखाई देने लगी, अब क्या करना चाहिए? जहाँ तक मैं समझता हूँ, तुम्हारे हमले की खबर रोहतासगढ़ पहुँची है और यह फौज रोहतासगढ़ से आ रही है, मगर दो-तीन सौ से ज्यादा आदमी न होंगे।"
इसके बाद पश्चिम की तरह से बाजे की आवाज आई और गौर करने पर मालूम हआ कि पश्चिम तरफ से भी फौज आ रही है।
शिवदत्त के सिपाही बहुत मेहनत कर चुके थे, न भी मेहनत किये हों, तो क्या था, राजा वीरेन्द्रसिंह की फौज की खबर पाकर अपने कलेजे को मजबूत रखना ऐसे सिपाहियों का काम न था जो वर्षों बिना तनखाह के सिर्फ मालिक के नाम पर अपने सिपाहीपन को टेरे जाते हों। उन लोगों ने घबड़ा कर शिवदत्त की तरफ देखा। यद्यपि कैद की सख्ती ने शिवदत्त की सूरत-शक्ल और आवाज में भी फर्क डाल दिया था, मगर इस समय राजा वीरेन्द्रसिंह की फौज के आने से उसके चेहरे पर किसी तरह की घबड़ाहट या उदासी नहीं पाई गई। शिवदत्त ने अपने सिपाहियों की तरफ देखा और हिम्मत दिलाने वाले शब्दों में कहा, "घबराओ मत हिम्मत न हारो, हौसले के साथ भिड़ जाओ और इन सभी का असबाब भी लूट लो, मगर इस बात का खूब ध्यान रखो कि भाग कर इस मकान के अन्दर न घुस जाना, नहीं तो चारों तरफ से घेर कर सहज ही में मार डाले जाओगे। यदि मैदान में डटे रहोगे तो कठिन समय पड़ जाने पर भागने को भी जगह मिलेगी-" इत्यादि।
क्या करें? लड़ें या न लड़ें? रुकें या भाग जायें? इत्यादि सोच-विचार और सलाह में ही बहुत-सा अमूल्य समय निकल गया और धावा करते हुए राजा वीरेन्द्रसिंह के फौजी सिपाहियों ने पूरब और पश्चिम तरफ से आकर दुश्मनों को घेर लिया। यद्यपि शिवदत्त के सिपाही भागने के लिए तैयार थे, मगर शिवदत्त के हिम्मत दिलाने वाले शब्दों की बदौलत जिन्हें वह बार-बार अपने मुँह से निकाल रहा था, थोड़ी देर के लिए अड़ गये और राजा वीरेन्द्रसिंह की फौज से जो गिनती में दो सौ से ज्यादा न होगी, जी तोड़ के लड़ने लगे। उनके अटल रहने और जी तोड़ कर लड़ने का एक यह भी सबब था कि उन लोगों ने राजा वीरेन्द्रसिंह के फौजी सिपाहियों को जो वास्तव में रोहतासगढ़ से
च० स०-3-9