पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१५९

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कमन्द इस खूबसूरती के ढंग से लपेटे हुए था कि देखने से औरों को तो नहीं, मगर ऐयारों की बहुत ही खूबसूरत जंचती होगी। कमर में बाईं तरफ लटकने वाली तलवार की म्यान साफ कह रही थी कि मैं एक हल्की-पतली तथा नाजुक तलवार की हिफाजत कर रही हूँ, पीठ पर गैंडे की एक छोटी-सी ढाल भी लटक रही थी, और हाथ में कोई चीज थी, जो कपड़े के अन्दर लपेटी हुई थी। वह सब कुछ था, मगर उसके सिर पर टोपी, पगड़ी या मुंडासा इत्यादि कुछ भी न था अर्थात् सिर से वह नंगा था। यह आदमी जिस ढंग और चाल से घूमकर भूतनाथ के सामने आ खड़ा हुआ, उससे मालूम होता था कि इसके बदन में फुर्ती और चालाकी कूट-कूटकर भरी हुई है।

कई सायत तक भूतनाथ चुपचाप गौर से उसकी तरफ देखता रहा और वह भी काठ की तरह खड़ा रहा। आखिर भूतनाथ ने कहा, "क्या तुम बहुत देर से हमारे साथ हो?"

आदमी-बहुत देर से ही नहीं, बल्कि बहुत दूर से भी।

भूतनाथ-ठीक है, मैंने रास्ते में तुम्हें एक झलक देखा भी था।

आदमी-मगर कुछ बोले नहीं और मैं भी यह सोचकर छिप गया कि कमलिनी के सामने कहीं तुम्हारी बेइज्जती न हो।

भूतनाथ और ताज्जुब नहीं कि यह भी सोच लिया हो कि इस समय भूतनाथ अकेला नहीं है।

आदमी-शायद यह भी है! (हंसकर), मगर सच कहना, क्या तुम्हें विश्वास था कि कभी मुझे फिर अपने सामने देखोगे?

भूतनाथ-नहीं, कभी नहीं, स्वप्न में भी नहीं। आदमी-अच्छा, तो फिर आज का दिन बहुत मुबारक समझना चाहिए। यह कहकर वह बड़े जोर से हँसा।

भूतनाथ- आज का दिन शायद तुम्हारे लिए मुबारक हो, मगर मेरे लिए तो बड़ा ही मनहूस है।

आदमी-इसलिए कि तुम मुझे मरा हुआ समझते थे?

भूतनाथ-केवल मरा ही हुआ नहीं, बल्कि पंचतत्व में मिल गया हुआ!

आदमी- और इसी से तुम निश्चिन्त थे तथा समझते थे कि तुम्हारे सच्चे दोषों को जानने वाला दुनिया में कोई नहीं रहा!

भूतनाथ- अब मुझे अपने दोषों के प्रकट होने का डर नहीं है। क्योंकि राजा वीरेन्द्रसिंह और उनके लड़कों तथा ऐयारों की तरफ से मुझे माफी मिल गई है।

आदमी-किसकी बदौलत?

भूतनाथ-कमलिनी की बदौलत।

आदमी-ठीक है, मगर उस सोहागिन की तरफ से तुम्हें माफी न मिली होगी जिसने अपना नाम तारा रखा हुआ है, बल्कि उसे इस बात की खबर भी न होगी कि तुम उसके ...

भूतनाथ-ठहरो-ठहरो, तुम्हें इसका खयाल रख के कोई नाजुक बात कहनी