पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१६०

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चाहिए कि मेरे सिवाय कोई और सुनने वाला तो नहीं है।

आदमी-कोई जरूरत नहीं कि मैं इस बात का ध्यान रखें। मैं अन्धा नहीं हूँ इसलिए तुम्हें इतना तो विश्वास होना ही चाहिए कि भगवानी मेरी आँखों की आड़ में न होगी!

भूतनाथ-खैर, तो भगवानी के सामने जरा सम्हल के बातें करो।

आदमी--सो कैसे हो सकता है? मैं बिना बातें किये टल नहीं सकता और तुम कमलिनी के डर से भगवानी को बिदा नहीं कर सकते। अच्छा देखो, मैं तुम्हारी इज्जत का खयाल करके भगवानी को बिदा कर देता हूँ! (भगवानी से) जारी, तू यहाँ से चली जा! जहाँ तेरा जी चाहे वहाँ चली जा!

भूतनाथ-(काँप कर) नहीं-नहीं, ऐसा न करो!

आदमी-मैं तो ऐसा ही करूँगा! (भगवानी से) जा री! तू जाती क्यों नहीं? क्या मौत के पंजे से बचना तुझे अच्छा नहीं लगता!

भूतनाथ-मैं हाथ जोड़ता हूँ, माफ करो, जरा सोचो तो सही।

आदमी-तुमने उस वक्त क्या सोचा था कि मैं सोचूं?

भूतनाथ-अच्छा, तब एक काम करो, इसके हाथ-पैर बाँधकर अलग कर दो, फिर हम बातें कर लेंगे।

आदमी-(भगवानी से) क्यों री, हाथ-पैर बंधवा के जान देना मंजूर है या भाग जाना पसन्द करती है?

इस आदमी और भूतनाथ की बातें सुन भगवानी को बड़ा आश्चर्य हो रहा था। वह सोच रही थी कि क्या सबब है जो यह अद्भुत मनुष्य बात-बात में भूतनाथ को दबाये जाता है? इसके मुँह से जितने शब्द निकलते हैं, सब हुकूमत और लापरवाही के ढंग के होते हैं और इसके विपरीत भूतनाथ के मुँह से निकले हुए शब्द उसकी बेबसी, लाचारी और कमजोरी की सूचना देते हैं। साफ-साफ जान पड़ता है कि भूतनाथ इससे दबता है और इसका इस समय यहाँ आना भूतनाथ को बहुत बुरा मालूम हुआ है। निःसन्देह इसमें और भूतनाथ में कोई गुप्त भेद की बात है जिसे भूतनाथ प्रकट नहीं करना चाहता। जो हो, पर मुझे इन बातों से क्या मतलब? सच तो यह है कि इस समय इसका यहाँ आना मेरे लिए बहुत मुबारक है। साफ देख रही हूँ कि वह मुझे चले जाने का हुक्म दे रहा है और भूतनाथ जोर करके उसका हुक्म टाल नहीं सकता, अतएव विलम्ब करना नादानी है, जहाँ तक हो सके, यहाँ से जल्द भाग जाना चाहिए। यद्यपि कमलिनी ने वादा किया है कि किशोरी, कामिनी और तारा के मिल जाने पर तेरी जान छोड़ दी जायगी-फिर भी पराधीन और खतरे में तो पड़ी ही रहूँगी। कौन ठिकाना तारा, कामिनी और किशोरी भूख-प्यास की तकलीफ से मर गई हों और इस सबब से कमलिनी क्रोध में आकर मेरा सिर उतार ले! नहीं-नहीं, ऐसा न होना चाहिए। इस समय ईश्वर ने ही मेरी मदद की है, जो इस आदमी को यहाँ भेज दिया है। अस्तु, जहाँ तक हो सके, जल्दी भाग जाना ही उचित है।

इन बातों को सोचकर भगवानी उठ खड़ी हुई और घने जंगल की तरफ रवाना