पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१६१

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हो गयी। फिर-फिरकर देखती जाती थी कि कहीं भूतनाथ मेरे पीछे तो नहीं आता, मगर ऐसा न था और इसलिए वह खुशी-खुशी कदम बढ़ाने लगी। उसने यह भी सोच लिया था कि माधवी, मनोरमा और शिवदत्त मेरी बदौलत छूट गये हैं। इसलिए उन तीनों में से चाहे जिसके पास मैं चली जाऊँगी, मेरी कदर होगी और मुझे किसी बात की परवाह न रहेगी। भगवानी स्वयं तो चली गयी, मगर घबराहट में उसने वह कीमती जेवरों और जवाहरात की चीजों की गठरी उसी जगह छोड़ दी जो कमलिनी के घर से लूटकर लाई थी। यह गठरी अभी तक उसी जगह एक पत्थर के ढोंके पर पड़ी हुई थी और इस पर किशोरी, कामिनी तथा तारा को छुड़ाने की जल्दी में कमलिनी ने भी विशेष ध्यान न दिया था, तो भी एक तौर पर यह गठरी भी भूतनाथ के ही सुपुर्द थी।

भगवानी को इस तरह चले जाते देख भूतनाथ की आँखों में खून उतर आया और क्रोध के मारे उसका बदन काँपने लगा। उसने जोर से जफील (सीटी) बजाई और इसके बाद उस आदमी की तरफ देख के बोला--

भूतनाथ–बेशक, तुमने बहुत बुरा किया कि भगवानी को यहाँ से बिदा कर दिया, मैं तुम्हारी इतनी जबर्दस्ती किसी तरह बरदाश्त नहीं कर सकता!

आदमी--(जोश के साथ) तो क्या तुम मेरा मुकाबला करोगे? कह दो, कह दो-हाँ, कह दो!

भूतनाथ-आखिर तुममें क्या सुरखाब का पर लगा हुआ है जो तुम इतना बढ़े चले जाते हो? मैं भी तो मर्द हूँ!

आदमी-(बहुत जोर से हँसकर-जिससे मालूम होता था कि बनावट की हंसी है) हाँ-हाँ, मैं जानता हूँ, तुम मर्द हो और इस समय मेरा मुकाबला करना चाहते हो!

यह कहकर उसने पीछे तरफ देखा, क्योंकि पत्तों की खड़खड़ाहट तेजी के साथ किसी के आने की सूचना देने लगी थी।

पाठकों को याद होगा कि कमलिनी यहाँ पर अकेले भूतनाथ को नहीं छोड़ गई थी, बल्कि श्यामसुन्दरसिंह को भी छोड़ गई थी। कमलिनी के चले जाने के बाद श्यामसुन्दरसिंह, भूतनाथ की आज्ञानुसार यह देखने के लिए वहाँ से चला गया था कि जंगल में थोड़ी दूर पर कहीं कोई ऐसी जगह है जहाँ हम लोग आराम से एक दिन रह सकें और किसी आने-जाने वाले मुसाफिर को मालूम न हो। यही सबब था कि इस समय श्यामसुन्दरसिंह मौजूद था और भूतनाथ ने उसी को बुलाने के लिए जफील दी थी, जिसके आने की आहट इन लोगों को मिली।

आदमी-(भूतनाथ से) मैं तो पहले ही समझ चुका था कि तुम श्यामसुन्दरसिंह को बुला रहे हो। मगर तुम विश्वास करो कि उसके आने से मैं उरता नहीं हूं, बल्कि तुम्हारी बेवकूफी पर अफसोस करता हूँ। मर्दे-आदमी, तुमने इतना न सोचा कि जब भगवानी के सामने तुम मेरी बातों को नहीं सुन सकते थे तो श्यामसुन्दरसिंह के सामने कैसे सुनोगे? खैर मुझे इन बातों से क्या मतलब, तुम्हें अख्तियार है, चाहे दो सौ आदमी इकट्ठ कर लो!

भूतनाथ-(घबराहट की आवाज से) तुम तो इस तरह बातें कर रहे हो जैसे