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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१६३

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लिया जाय।

भूतनाथ—(लम्बी साँस लेकर) वास्तव में तुम ठीक कहते हो। मैं भी इसी फेर में मुद्दत से पड़ा हुआ हूँ, (रुककर) खैर, यह बताओ कि हमारे-तुम्हारे बीच में किसी तरह का मामला तै हो सकता है, या तुम थोड़े दिन के लिए मुझे छोड़ सकते हो जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ?

आदमी―नहीं, बल्कि तुम्हें इसी समय हमारे साथ चलना होगा।

भूतनाथ―कहाँ?

आदमी―जहाँ मैं ले चलूँ।

भूतनाथ―जबर्दस्ती?

आदमी―हाँ, जबर्दस्ती!

भूतनाथ―ऐसा नहीं हो सकता!

आदमी―ऐसा ही होगा!

भूतनाथ―तुम अपनी ताकत पर भरोसा करते हो?

आदमी―हाँ, अपनी ताकत पर और तदबीर पर भी!

भूतनाथ―अच्छा, फिर देखेंगे।

आदमी―अच्छा, तो श्यामसुन्दरसिंह के सामने (गठरी दिखाकर) इसे खोलू, तुम डरोगे तो नहीं?

भूतनाथ―कोई हर्ज नहीं, मैं श्यामसिंह को तुम्हारी भूल समझा दूँगा।

आदमी―(हंसकर) ओ हो हो, तब तो मुझे इससे बढ़कर कोई तदबीर करनी चाहिए! अच्छा देखो!

इतना कहकर उस अद्भुत आदमी ने तीन दफे ताली बजाई और साथ ही इसके बगल वाले पेड़ों के झुरमुट में से एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया जिसने काले कपड़े से सिर से पैर तक अपने को ढाँक रक्खा था। भूतनाथ काँप कर कई कदम पीछे हट गया और बड़े गौर से उसकी तरफ देखने लगा और इसके बाद श्यामसुन्दरसिंह की तरफ निगाह फेरी, यह जानने के लिए कि देखें, इन बातों का असर उसके ऊपर क्या हुआ है मगर रात का समय और कुछ दूर होने के कारण श्यामसुन्दरसिंह के चेहरे का उतार-चढ़ाव भूतनाथ देख न सका।

भूतनाथ―(जी कड़ा करके) मैं कैसे जान सकता हूँ कि इस खोल के अन्दर कौन छिपा हुआ है?

नया आदमी―ठीक है, तब यदि कहो तो मैं इस कपड़े को उतार दूँ, मगर ताज्जुब नहीं कि मेरी आवाज तुम्हारे कानों में...

भूतनाथ―(चौंककर) बस बस, यह आवाज ऐसी नहीं है जिसे मैं भूल जाऊँ। हाय, बेबसी और मजबूरी इसे कहते हैं। (श्यामसुन्दरसिंह से) अच्छा, तुम थोड़ी देर के लिए यहाँ से चले जाओ, जब मैं जफील बजाऊँगा तब फिर आ जाना।

श्यामसुन्दरसिंह ने इस समय एक ऐसा नाटक देखा था जिसका उसे गुमान भी न था। उन दोनों आदमियों के आने से भूतनाथ की क्या हालत हो गई थी इसे वह खूब