पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१६४

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समझ रहा था मगर उसे इस बात का आश्चर्य था कि भूतनाथ जिसके नाम से लोगों के दिल में हौल पैदा होता है इस वक्त ऐसा मजबूर और बेबस क्यों हो रहा है? यद्यपि भूतनाथ का हक्म वह टाल नहीं सकता था और उसे वहाँ से टल जाना ही आवश्यक था मगर साथ ही इसके वह इस सीन को भी छोड़ नहीं सकता था। भूतनाथ की आज्ञा पाकर वह वहाँ से चला तो गया मगर घूम-फिर कर बिल्ली की तरह कदम रखता हुआ लौट आया और एक पेड़ की आड़ में छिपकर खड़ा हो गया, जहां से वह उन तीनों को देख सकता था और उनकी बातचीत भी बखूबी सुन सकता था।

जब भूतनाथ ने देखा कि श्यामसुन्दरसिंह चला गया है तो उसने उस आदमी से कहा जो पहले आया था, "क्या हमारे बीच में मेल नहीं हो सकता?"

आदमी-नहीं। भूतनाथ-फिर तुम मुझसे क्या चाहते हो?

आदमी—यही कि चुपचाप हमारे साथ चले चलो।

इस बात को सुनकर भूतनाथ ने सिर झुका लिया और कुछ सोचने लगा। यह अवस्था देखकर उस आदमी ने कहा, “भूतनाथ, मालूम होता है कि तुम भागने की तदबीर सोच रहे हो, मगर इस बात को खूब याद रक्खो कि मेरे सामने से तुम्हारा भाग जाना बिल्कुल ही वृथा है जब तक कि यह चीज मेरे पास मौजूद है और मेरे साथी जीते हैं। मैं फिर कहता हूँ कि चुपचाप मेरे साथ चले चलो और जो कुछ मैं कहूँ करो!"

भतनाथ-नहीं-नहीं, मैं भागना पसन्द नहीं करता बल्कि इसके बदले में तुम्हारे साथ लड़कर जान दे देना उचित समझता हूँ।

आदमी-अगर यही इरादा है तो आओ, मैं मुस्तैद हैं!

यह कहकर उस आदमी ने अपने हाथ की गठरी उस दूसरे आदमी के हाथ में दे दी जो सिर से पैर तक काले कपड़े से ढंका हुआ था और उसे वहां से चले जाने के लिए कहा। वह व्यक्ति वहां से हटकर पेड़ों की आड़ में गायब हो गया और उस विचित्र मनुष्य ने तलवार म्यान से बाहर खींच ली। भूतनाथ ने भी तलवार खींच ली और उसके सामने पैतरा बदलकर आ खड़ा हुआ और दोनों में लड़ाई शुरू हो गई। निःसन्देह भूतनाथ तलवार चलाने के फन में बहुत होशियार और बहादुर था मगर श्यामसुन्दरसिंह ने जो छिपकर यह तमाशा देख रहा था, मालूम कर लिया कि उसका वैरी इस काम में उससे बहत बढ़-चढ़ के है क्योंकि घण्टे-भर की लड़ाई में ही उसने भूतनाथ को सुस्त कर दिया और अपने बदन में एक जख्म भी न लगने दिया, इसके विपरीत भूतनाथ के बदन में छोटे-छोटे कई जख्म लग चुके थे और उनमें से खून निकल रहा था। केवल इतना ही नहीं, श्यामसुन्दरसिंह ने यह भी मालूम कर लिया कि उस अद्भुत आदमी ने, जो लड़ाई के फन में भूतनाथ से बहुत ही बढ़-चढ़ के है, कई मौकों पर जान-बूझ के तरह दे दी और भूतनाथ को छोड़ दिया, नहीं तो अब तक वह भूतनाथ को कब का खत्म कर चुका होता।

मगर क्या भूतनाथ इस बात को नहीं समझता था? बेशक समझता था! वह खूब जानता था कि आज मेरा दुश्मन मुझसे बहत जबर्दस्त है और उसने कई मौकों पर