पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१६५

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जब कि वह मेरी जान ले सकता था, जान-बूझकर तरह दे दी या अगर जख्म पहुँचाया भी तो बहुत कम।

सुबह हो चुकी थी। अब वहाँ की चीजें बिल्कुल साफ-साफ दिखाई देने लगी थीं। भूतनाथ बहुत ही थक गया था, इसलिए वह सुस्ताने के लिए ठहर गया और बड़े गौर से अपने वैरी की सूरत देखने लगा जिसके चेहरे पर थकावट या उदासी का कोई चिह्न नहीं दीख पड़ता था बल्कि वह मन्द-मन्द मुसका रहा था और उसकी आँखें भूतनाथ के चेहरे पर इस ढंग से पड़ रही थीं जैसे उस्तादों की निगाहें अपने नौसिखुए चेलों पर पड़ा करती हैं।

भूतनाथ ठहर गया और उसने धीमी आवाज में अपने बैरी से कहा, "अब मैं लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकता, विशेष करके इसलिए कि तुम मुझसे उस तरह नहीं लड़ते जैसे दुश्मनों को लड़ना चाहिए। मैं खूब जानता हूँ कि तुमने कई मौकों पर मुझे छोड़ दिया। खैर, अब मैं अपनी भलाई के लिए सिवाय इसके और कोई उपाय नहीं देखता कि अपने हाथ से अपनी जान दे दूँ।"

आदमी-नहीं-नहीं, भूतनाथ, तुम अपने हाथ से अपनी जान नहीं दे सकते। क्योंकि तुम्हारी एक बहुत ही प्यारी चीज मेरे कब्जे में है। जो तुम्हारे बाद बड़ी तकलीफ में पड़ जायगी और जिसे तुम 'लामाघाटी' में छोड़ आये थे। मुझे विश्वास है कि तुम उसकी बेइज्जती कबूल न करोगे!

यह एक ऐसी बात थी, जिसने भूतनाथ के दिल को एकदम से ही मसल डाला और इस तकलीफ को वह सह न सका। उसका सिर घूमने लगा, वह धीरे-से जमीन पर बैठ गया, और वह विचित्र आदमी इस ढंग से उसे देखने लगा जैसे बाघ अपने शिकार को काबू में कर लेने के बाद आशा और प्रसन्नता की दृष्टि से उसकी तरफ देखता है।

श्यामसुन्दरसिंह इस दृश्य को गौर और ताज्जुब से देख रहा था। बीच में एक दफे उसकी यह इच्छा भी हुई कि झाड़ी में से बाहर निकले और भूतनाथ के पास पहुँच कर उसकी मदद करे मगर दो बातों को सोच कर वह रुक गया। एक तो यह थी कि भूतनाथ ने उसे वहाँ से बिदा कर दिया था और कह दिया था कि 'जब हम जफोल बजाएँ तब आना' मगर इतनी लड़ाई होने और हार मानने पर भी भूतनाथ ने उस नही बुलाया, इससे साफ मालूम होता है कि भूतनाथ श्यामसुन्दरसिंह का उस जगह आना पसन्द नहीं करता, दूसरे यह है कि उसने कमलिनी की जुबानी भूतनाथ की बहुत तारीफ सुनी थी। कमलिनी जोर देकर कहती थी कि लड़ाई के फन में भूतनाथ बहुत ही तेज और होशियार है। मगर इस जगह उस विचित्र मनुष्य के सामने उसने भूतनाथ को ऐसा पाया जैसे काबिल उस्ताद के सामने एक नौसिखुआ लड़का। इससे यह नहीं कहा जा सकता कि भूतनाथ नादान है, बल्कि भूतनाथ ने जिस चालाकी और तेजी से अपने वैरी का मुकाबला किया, वह साधारण आदमी का काम नहीं था, असल तो यह है कि भूतनाथ का वैरी ही कोई विचित्र व्यक्ति था। उसकी चालाकी, फुर्ती और वीरता देखकर श्यामसुन्दरसिंह यद्यपि सिपाही था, मगर डर गया। और मन में कहने लगा कि यह मनुष्य नहीं है, इसके सामने जाकर मैं भूतनाथ की कुछ भी मदद नहीं कर सकता।

च० स०-3-10