पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
182
 


वटी हैं, जब वे अलग किए जायँगे और इसका चेहरा धोया जायगा तब शायद तुम इसे पहचान सको।

तारा―कदाचित ऐसा ही हो।

कमलिनी―अच्छा तो पहले इसका चेहरा साफ करना चाहिए।

देवीसिंह—मैं भी यही मुनासिब समझता हूँ, इसके बाद इसे होश में लाकर जो कुछ पूछना हो पूछा जायगा।

इतना कहकर देवीसिंह ने अपने बटुए में से लोटा निकाला, भैरोंसिंह का लोटा भी उठा लिया और जल भरने के लिए चश्मे के किनारे गये। चश्मा बहुत दूर न था इसलिए बहुत जल्द लौट आये और बाल दूर करके उसका चेहरा धोने लगे। आश्चर्य की बात है कि जैसे-जैसे उस विचित्र मनुष्य का चेहरा साफ होता था, तैसे-तैसे तारा के चेहरे की रंगत बदलती जाती थी यहाँ तक कि उसका चेहरा अच्छी तरह साफ हुआ भी न था कि तारा ने एक चीख मारी और 'हाय' कह के गिरने के साथ ही बेहोश हो गई। उस वक्त सभी का खयाल तारा की तरफ जा रहा और कमलिनी ने कहा, “निःसन्देह को तारा पहचानती है!”

उसी समय भैरोंसिंह की निगाह सामने की तरफ जा पड़ी और एक नकाबपोश को अपनी तरफ आते हुए देखकर उसने कहा, “देखिये, एक नकाबपोश हम लोगों की तरफ ही आ रहा है! आश्चर्य है कि उसने यहाँ का रास्ता कैसे देख लिया! कदाचित् चाचाजी के पीछे छिपकर चला आया हो। बेशक ऐसा ही है, नहीं तो इस भूलभुलैया रास्ते का पता लगाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है! जो हो मगर मैं कसम खाकर कह सकता हूँ कि यह वही नकाबपोश है जिसका हाल इस समय सुनने में आया है। और देखो उसके हाथ में एक गठरी भी है, हाँ यह वही गठरी होगी जिसके विषय में कहा जाता है कि इसमें तारा की किस्मत बन्द है!”

कमलिनी―बेशक ऐसा ही है।

देवीसिंह―हाँ, इसके लिए तो मैं भी कसम खा सकता हूँ।