हम ग्यारहवें भाग के अन्त में लिख आये हैं कि जब देवीसिंह ने उसे विचित्र मनुष्य का चेहरा धोकर साफ किया तो शायद तारा ने उसे पहचान लिया और इस घटना का उस पर ऐसा असर हुआ कि वह चिल्ला उठी, उसका सिर घूमने लगा और वह जमीन पर गिरने के साथ ही बेहोश हो गई। उसी समय सामने से वह नकाबपोश भी आता हुआ दिखाई दिया जिसने उस विचित्र मनुष्य को हैरान-परेशान कर दिया था और उस गठरी को भी अपने कब्जे में कर लिया था जिसमें विचित्र मनुष्य के कहे मुताबिक तारा की किस्मत बन्द थी। इस बयान में भी हम उसी सिलसिले को जारी रखना उचित समझते हैं।
बात की बात में नकाबपोश उस जगह आ पहुँचा जहाँ वह विचित्र मनुष्य और उसके सामने एक पत्थर की चट्टान पर तारा बेहोश पड़ी हुई थी तथा कमलिनी बड़ी मुहब्बत से तारा का सिर थामे ताज्जुब-भरी निगाहों से हरएक को देख रही थी।
देवीसिंह―(नकाबपोश से) आप यहाँ कैसे? क्या यहाँ का रास्ता आपको मालूम था?
नकाबपोश―नहीं-नहीं, मैं तुम्हारे पीछे-पीछे यहाँ तक आया हूँ।
इतना कहकर नकाबपोश ने अपने चेहरे से नकाब उठाकर पीछे की तरफ उल दी और सभी ने तेजसिंह को पहचान कर बड़ा ही आश्चर्य किया। भैरोंसिंह ने दौड़क अपने पिता के चरण छूए, देवीसिंह भी तेजसिंह के गले मिले और किशोरी कामिन लाड़िली तथा कमलिनी ने भी उन्हें प्रणाम किया।
देवीसिंह―(तेजसिंह से) क्या आप ही वह नकाबपोश हैं जिसका विचित्र हा भूतनाथ की जुबानी मैंने सुना है?
तेजसिंह―हाँ, मैं ही था, मगर भूतनाथ को इस बात का शक भी न हुआ हो कि नकाबपोश वास्तव में तेजसिंह है। (विचित्र मनुष्य की तरफ इशारा करके) इस और भूतनाथ के बीच में जो-जो बातें या घटनाएँ हुई वह भूतनाथ की जुबानी तुमने सुना