पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१८६

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अवश्य अपने साथ ले जाऊँगा और नहीं तो आज ही उसका भण्डा फोड़ दूँगा जो बड़ा अच्छा नेक और बहादुर बना फिरता है!” इतना कह दोनों पुनः घोड़े पर सवार हुए और आगे की तरफ चले। मेरे दिल में तरह-तरह के खुटके पैदा हो रहे थे और मैं अपने को उनके पीछे-पीछे जाने से किसी तरह रोक नहीं सकता था। लाचार हम दोनों भी उनके पीछे तेजी के साथ रवाना हुए। इस बात की फिक्र मेरे दिल से बिल्कुल जाती रही कि हमारे फौजी सिपाही दुश्मनों के मुकाबले में कब पहुँचेंगे और क्या करेंगे। अब तो यह फिक्र पैदा कि यह आदमी कौन है और इससे तथा भूतनाथ से क्या सम्बन्ध है, इस बात का पता लगाना चाहिए, और इसीलिए हम लोग अपना रास्ता छोड़ कर घोड़े के पीछे-पीछे ही रवाना हुए मगर हम लोगों को बहुत देर तक सफर न करना पड़ा और शीघ्र ही हम लोग उस जंगल में जा पहुँचे जिसमें भगवानी और श्यामसुन्दर कहा-सुनी हो रही थी और थोड़ी देर के बाद आप लोग भी पहुँच गये थे। मैं जान-बूझकर आप लोगों से नहीं मिला और इस विचित्र मनुष्य के पीछे पड़ा रहा यहाँ तक कि आप लोग चले गये और मुझे वह विचित्र घटना देखनी पड़ी।”

इसके बाद तेजसिंह ने वह सब हाल कहा जिसे हम ऊपर लिख आये हैं और पुनः इस जगह दोहरा कर लिखना वृथा समझते हैं। हाँ, उस दूसरे नकाबपोश के विषय में कदाचित् पाठकों को भ्रम होगा इसलिए साफ लिख देना आवश्यक है कि वह दूसरा नकाबपोश जिसने भगवानी को भागने से रोक रखा था और जिसके पास पहुँचने के लिए तेजसिंह ने श्यामसुन्दरसिंह को नसीहत की थी, वास्तव में तारासिंह था जिसका हाल इस समय तेजसिंह के बयान करने से मालूम हुआ।

जो कुछ हम ऊपर लिख आये हैं, उतना बयान करने के बाद तेजसिंह ने कहा, “जब यह विचित्र मनुष्य भूतनाथ को लेकर रवाना हुआ तो मैं भी इसके पीछे-पीछे चला पर बीच ही में उससे और देवीसिंह से मुलाकात हो गई, देवीसिंह उसे पकड़ के यहाँ ले आये और मैं भी देवीसिंह के पीछे-पीछे चुपचाप यहाँ तक चला आया।”

इतना कह कर तेजसिंह चुप हो गये और तारा की तरफ देखने लगे।

कमलिनी―यह घटना तो बड़ी ही विचित्र है, निःसन्देह इसके अन्दर कोई गुप्त रहस्य छिपा हुआ है।

तेजसिंह―जहाँ तक मैं समझता हूँ मालूम होता है कि आज बड़ी-बड़ी गुप्त बातों का पता लगेगा। अब कोई ऐसी तरकीब करनी चाहिए जिसमें यह (विचित्र मनुष्य की तरफ इशारा करके) अपना सच्चा हाल कह दे।

देवीसिंह―तो इसे होश में लाना चाहिए।

तेजसिंह―नहीं, इसे अभी इसी तरह पड़ा रहने दो। कोई हर्ज नहीं और पहले तारा को होश में लाने का उद्योग करो।

देवीसिंह―बहुत अच्छा।

अब देवीसिंह तारा को होश में लाने का उद्योग करने लगे और तेजसिंह ने कमलिनी से कहा, “जब तक तारा होश में आवे, तब तक तुम अपना हाल और इस तरफ जो कुछ बीता है, सो सब हाल कह जाओ।” कमलिनी ने ऐसा ही किया अर्थात्