पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१९

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एक आदमी जो उसकी बात सुनता कह सकता था कि वह अपनी आवाज को बिगाड़ कर बातें कर रहा है।

धनपत यद्यपि इस फिक्र में था कि दोनों नकाबपोशों को गिरफ्तार करना चाहिए मगर इस नकाबपोश की गहरी और भेद से भरी हुई बात ने उसका कलेजा यहाँ तक दहला दिया कि उसके लिए बात का जवाब देना भी कठिन हो गया, मगर वे लौंडियाँ जो उस जगह छिपी हुई थीं चारों तरफ से आकर जरूर वहाँ जुट गईं और उन्होंने दोनों नकाबपोशों को घेर लिया। धनपत सोच रहा था कि मायारानी भी इसी जगह आ पहुँचेगी लेकिन यह आशा उसकी वृथा ही हुई, क्योंकि उस नकाबपोश की आवाज का सबसे ज्यादा असर मायारानी पर ही हुआ। वह घबरा कर वहाँ से भागी और अपने दवानखाने में जाकर बैठ रही, जहाँ कई लौंडियां पहरा दे रही थीं। आते ही उसने एक लौंडी की जुबानी अपने सिपाहियों को जो बाग के पहले दर्जे में रहा में रहा करते थे, कहला भेजा कि 'खास बाग में फलां जगह पर दो दुश्मन घुस आये हैं, उन्हें जाकर फौरन गिरफ्तार करो और उनका सिर काट कर मेरे पास भेजो।" इधर धनपत ने देखा कि बहुत-सी लौंडियाँ हमारी मदद पर आ पहुंची हैं तो उसे भी कुछ हिम्मत हुई और वह उस नकाबपोश की तरफ देख कर बोला

धनपत-तुम लोग यहाँ किस काम के लिए आये हो?

नकाब–इसका जवाब हम तुझ कम्बख्त को क्यों दें? धनपत-मालम होता है कि मौत तम दोनों को यहाँ तक खींच लाई है।

नकाब-(हँस कर) हाँ, मैं भी यही समझता हूँ कि तेरी मौत हम दोनों को यहाँ तक खींच लाई है।

इतना सुनते ही धनपत ने नकाबपोश पर खंजर का वार किया। मगर उसने फुर्ती से पैतरा बदल कर वार खाली कर दिया, मगर दूसरे नकाबपोश ने चालाकी से धनपत के पीछे जाकर एक लात उसकी कमर में ऐसे जोर से मारी कि वह औंधे मुंह जमीन पर गिर पड़ा। मगर तुरन्त ही सम्हल कर उठ बैठा और दोनों नकाबपोशों को गिरफ्तार करने के लिए लौंडियों को ललकारा। लौंडियां दोनों नकाबपोशों की अवस्था देख परेशान हो रही थीं। एक तो उन्हें विश्वास हो गया कि ये दोनों नकाबपोश मर्द हैं, दूसरे धनपत की ताकत पर उन सभी को बहुत-कुछ भरोसा था सो उसकी भी दुर्दशा आँखों के सामने देखने में आई। तीसरे, नकाबपोश की जुबानी यह सुनकर कि धनपत मर्द है और उसके जवाब में धनपत को चुप पाकर लौंडियों का खयाल बिल्कुल ही बदल गया था, तिस पर भी, वे सब दोनों नकाबपोशों को घेर कर खड़ी हो गई। धनपत ने फिर ललकार कर कहा, "देखो, ये दोनों चोर हैं, भागने न पावें।"

लम्बे नकाबपोश ने लपक कर बहादुरी के साथ धनपत की दाहिनी कलाई जिसमें खंजर था, पकड़ ली और कहा, "हम लोग भागने के लिए नहीं आये हैं, बल्कि गिरफ्तार होकर एक अनूठा तमाशा दिखाने के लिए आये हैं। मगर तुमको भाग जाने का मौका न देंगे। (लौंडियों की तरफ देख कर) हम लोग स्वयं यहाँ से टलने वाले नहीं हैं और जहाँ कहो चलने के लिए तैयार हैं।"