पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१९५

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आज खाने-पीने की इच्छा किसी की भी न थी, मगर तेजसिंह के समझाने-बुझाने से सभी ने कुछ खाया और जब शान्त हुए तो तेजसिंह ने कहा, "अब हमको तालाब वाले मकान में चलना चाहिए।"

बलभद्रसिंह-हाँ, अब इस जगह रहना ठीक न होगा, मकान में चलकर जो-कुछ पढ़ना या देखता हो, करिएगा।

कमलिनी-मेरी भी यही राय है। मैं देवीसिंहजी से कह चुकी हूँ कि यदि मैं उस मकान में रहती तो दुश्मन हमारा कुछ भी न बिगाड़ सकते और तालाब को पाट देना तो असम्भव ही था। खैर, अब भी मैं बिना परिश्रम के उस तालाब की सफाई कर सकती हूँ।

इतना कहकर कमलिनी ने तालाब वाले मकान का बहुत-सा भेद तेजसिंह को बताया और जिस तरह से तालाब की सफाई हो सकती थी वह भी कहा, जो कि हम ऊपर भी लिख आये हैं। अन्त में सभी ने निश्चय कर लिया कि घण्टे भर के अन्दर इस जगह को छोड़ देना और तालाब वाले मकान में चले जाना चाहिए।


2

सुबह का सुहावना समय है। पहले घण्टे की धूप ने ऊँचे-ऊँचे पेड़ों की टहनियों, मकानों के कंगूरों और पहाड़ों की चोटियों पर सुनहली चादर बिछा दी है। मुसाफिर लोग दो-तीन कोस की मंजिल मार चुके हैं। तारासिंह और श्यामसुन्दरसिंह अपने साथ भगवनिया और भूतनाथ को लिए हुए तालाब वाले तिलिस्मी मकान की तरफ जा रहे हैं। उनके दोनों साथी अर्थात् भगवनिया और भूतनाथ अपने-अपने गम में सिर नीचा किए चुपचाप पीछे-पीछे जा रहे हैं। भूतनाथ के चेहरे पर उदासी और भगवनिया के चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई है। कदाचित भूतनाथ के चेहरे पर भी मुर्दनी छाई हुई होती या वह इन लोगों में न दिखाई देता यदि उसे इस बात की खबर होती कि तारा की किस्मत वाली गठरी तेजसिंह के हाथ लग गई है और तारा तथा बलभद्रसिंह का भेद खुल गया है। वह तो यही सोचे हुए था कि तारा अपने बाप को नहीं पहचानेगी, बलभद्रसिंह अपने को छिपावेगा और देवीसिंह मेरे भेदों को गुप्त रखने का उद्योग करेगा। बस इतनी ही बात थी जिससे वह एकदम हताश नहीं हुआ था और इन लोगों के साथ कमलिनी से मिलने के लिए चुपचाप सिर झुकाये हुए कुछ सोचता-विचारता जा रहा था। वह अपनी धुन में ऐसा डूबा हुआ था कि उसे अपने चारों तरफ की कुछ भी खबर न थी और उसकी वह धुन उस समय टूटी जब तारासिंह ने कहा, "वह देखो, तालाब वाला तिलिस्मी मकान दिखाई देने लगा। कई आदमी भी नजर पड़ते हैं। मालम पड़ता है कि उसमें कमलिनी का डेरा आ गया। अगर मेरी निगाह धोखा नहीं देती तो मैं कह सकता हूँ कि यह चबूतरे के दक्षिणी कोने पर खड़े होकर जो इसी तरफ देख रहे हैं,