पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१९४

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"मेरे भाग्यशाली मित्र हेलासिंह,

मुबारक हो! आज हमारी जहरीली मिठाई बलभद्रसिंह के घर में जा पहुँची। इसका जो कुछ नतीजा होगा, उसको मैं अगली चिट्ठी में लिखूँगा। वास्तव में तुम किस्मतबर हो।

वही―भूत।"
 

कमलिनी―हाय कम्बख्त, तेरा सत्यानाश हो!

लाड़िली―चाण्डाल कहीं का, ऐसा सत्यानाशी और हम लोगों के साथ रहे! छीः छीः!

तारा―(तेजसिंह से) हाय, मेरा जी डूबा जाता है, मैं हाथ जोड़ती हूँ। इसके बाद वाली चिट्ठी शीघ्र पढ़िये जिसमें मालूम हो कि उस विश्वासघाती की मिठाई का क्या नतीजा निकला।

सब―हाँ-हाँ, यहाँ पर हम लोग नहीं रुक सकते, शीघ्र पढ़िये।

तेजसिंह―मैं पढ़ता हूँ―

"श्रीमान प्यारे बन्धु हेलासिंह,
 

खुशी मनाइये कि मेरी मिठाई ने लक्ष्मीदेवी की माँ, लक्ष्मीदेवी के छोटे भाई और दो लौंडियों का काम तमाम कर दिया। बलभद्रसिंह और उसकी तीनों लड़कियों ने मिठाई नहीं खाई थी, इसलिए बच गयीं। खैर, फिर सही, जाते कहाँ हैं।

वही―भूत।"
 

इस चिट्ठी ने तो अन्धेर कर दिया। कोई भी ऐसा नहीं था जिसकी आँख से आँसू न निकल रहे हों। कमलिनी और लाड़िली रोने लगीं, और लक्ष्मीदेवी तो चिल्ला कर बोली, "हाय, इस समय मुझे लड़कपन सब बातें याद आ रही हैं। वह समाँ मेरी आँखों के सामने घूम रहा है। मेरे घर में वैद्यों की धूम मची हुई थी, मेरी प्यारी माँ अपने लड़के की लाश पर पछाड़ें खा रही थी, अन्त में वह भी मर गई। हम लोग रो-रोकर लाश के साथ चिपटते थे और हमारा बाप हम लोगों को खींच-खींचकर अलग करता था। हाय! क्या दुनिया में कोई ऐसी सजा है जो इस बात का पूरा बदला कहला सके!"

किशोरी―(रोकर) कोई नहीं, कोई नहीं!

कमलिनी―हाय! मेरे कलेजे में दर्द होने लगा! किस दुष्ट का जीवनचरित्र मैं सुन रही हूँ! बस अब मुझमें सुनने की सामर्थ्य नहीं रही, (रोकर) ओफ, इतना जुल्म! इतना अन्धेर!

भैरोंसिंह―बस रहने दीजिए, अब इस समय आगे न पढ़िये।

तेजसिंह―इस समय मैं आगे पढ़ ही नहीं सकता।

तेजसिंह ने कागज का मुट्ठा लपेट कर रख दिया और सभी को दिलासा और तसल्ली देने लगे। तेजसिंह का इशारा पाकर भैरोंसिंह और देवीसिंह कई तीतर और बटेर का शिकार कर लाये और उसका कबाब तथा शोरबा बनाने लगे जिसमें सभी को खिला-पिलाकर शान्त करें।