पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२०९

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को पुनः पढ़ना आरम्भ करें मगर उन्हें शीघ्र ही मालूम हो गया कि कोई ऐयार तब तक भूतनाथ को लेकर रोहतासगढ़ जाना खुशी से पसन्द न करेगा जब तक भूतनाथ की जन्मपत्री पढ़ या सुन न लेगा। अस्तु तेजसिंह की यही इच्छा हुई कि लगे हाथ सब कोई रोहतासगढ़ चले चलें और जो कुछ हो वहाँ ही हो। अन्त में ऐसा ही हुआ अर्थात् तेजसिंह की आज्ञा सभी को माननी पड़ी।



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नानक को तो हमने इस तरह भुला दिया जैसे अमीर लोग किसी से कुछ वादा करके उसे भुला देते हैं। आज अकस्मात् नानक की याद आयी है, अकस्मात् काहे, वल्कि यों कहना चाहिए कि यकायक आ पड़ने वाली आवश्यकता ने नानक की याद दिला दी है।

जमानिया प्रान्त से भागे हुए स्वार्थी नानक ने वहाँ से बहुत दूर जाकर अपना डेरा बसाया और यही सबब है कि आज मिथिलेश की अमलदारी में एक छोटे से शहर के मामूली मुहल्ले में मँगनी का मकान लेकर लापरवाही के साथ दिन बिताते हुए नानक को हम देखते हैं। यह शहर यद्यपि छोटा है मगर दो-तीन पढ़े-लिखे विद्यानुरागी रईसों और अमीरों के कारण जिन पर यहाँ की रिआया का बहुत बड़ा प्रेम है, अँगूठी का सुडौल नगीना हो रहा है।

नानक यद्यपि कंगाल नहीं था मगर बहुत ही खुदगर्ज और साथ-साथ कंजूस भी होने के कारण अपने को छिपाये हुए बहुत ही साधारण ढंग से रहा करता था, अर्थात् उसके घर में (कुत्ते-बिल्ली को छोड़) एक नौकर, एक मजदूरनी और एक उसकी जोरू के सिवाय जिसे वह न मालूम कहाँ से उठा लाया या ब्याह लाया था, और कोई भी नहीं रहता था। लोगों का कथन तो यही था कि नानक ने ब्याह कर अपनी गृहस्थी बसाई है मगर कई आदमियों को जो नानक के साथ ही साथ रामभोली के किस्से से भी अच्छी तरह जानकार थे, इस बात का विश्वास नहीं होता था।

नानक के लिए यह शहर नया नहीं है। जब से उसका नाम इस किस्से में आया है उसके पहले भी समय-समय पर कई दफे वह इस शहर में आकर रह चुका है। अब की दफे यद्यपि उसे इस शहर में आए बहुत दिन नहीं हुए मगर वह इस ढंग से रह रहा है जैसे पुराना वाशिन्दा हो। वह यह भी सोचे हुए है कि उसका गुमनाम बाप, अर्थात् भूतनाथ जिसका असल हाल थोड़े ही दिन हुए, उसे मालूम हुआ है, बहुत जल्द वीरेन्द्रसिंह की बदौलत मालामाल होकर शहर में आवेगा और उस समय हम लोग बड़ी खुशी से जिन्दगी बितावेंगे मगर उसकी इस आशा को बड़ा भारी धक्का लगा जैसा कि आगे चलकर मालूम होगा।

रात पहर भर के लगभग जा चुकी है। नानक अपने मकान के अन्दर वाले