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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२१५

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नकाबपोश–(हँस कर) शाबाश-शाबाश, जीते रहो! अब मैं तुमसे खुश हो गया, क्योंकि अब तुम भी अपनी बातों में उपमालंकार की टाँग तोड़ने लगे। सच तो यों है कि तुम्हारा झुंझलाना मुझे उतना ही अच्छा लगता है, जितना इस समय भूख की अवस्था में फजली आम और अधावट दूध से भरा हुआ चौसेरा कटोरा मुझे अच्छा लगता।

नानक-तो साफ-साफ क्यों नहीं कहते कि हम भूखे हैं? जब तक पेट भर कर खा न लेंगे, तब तक असल मतलब न कहेंगे।

नकाबपोश—शाबाश, खूब समझे। बेशक मैंने यही सोचा था कि तुम्हारे यहाँ दक्षिणा के सहित भोजन करूँगा और उन बातों का रत्ती-रत्ती भेद बदौलत तुम कुम्भीपाक में पड़ने से भी ज्यादा दुःख भोगना चाहते हो, मगर नहीं, दरवाजे पर पहुँचते ही देखता हूँ कि फोड़ा फूट गया और सड़ा मवाद बह निकला है। अब तुम इस लायक न रहे कि तुम्हारा छूआ पानी भी पीया जाय। खैर, हम तुम्हारे दोस्त हैं, जिस काम के लिए आये हैं, उसे अवश्य ही पूरा करेंगे। (कुछ सोच कर) कभी नहीं, छि:-छि:, तुम नालायक से अब हम दोस्ती रखना नहीं चाहते। जो कुछ ऊपर कह चुके हैं, उसी से जहाँ तक अपना मतलब निकाल सको, निकाल लो और जो कुछ करते बनो करो, हम जाते हैं!

इतना कह कर नकाबपोश वहाँ से रवाना हो गया। नानक ने उसे बहत समझाया और रोकना चाहा। मगर उसने एक न सुनी और सीधे नदी के किनारे का रास्ता लिया तथा नानक भी अपनी बदकिस्मती पर रोता हुआ घर पहुंचा। उस समय मालूम हुआ कि उसके नौजवान अमीर दोस्त को अच्छी तरह अपनी नायाब ज्याफत का आनन्द लेकर गये हुए आधी घड़ी बीत चुकी है।


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सन्तति के छठवें भाग के पांचवें बयान में हम लिख आए हैं कि कमलिनी ने जब कमला को मायारानी की कैद से छुड़ाया तो उसे ताकीद कर दी कि त सीधे रोहतासगढ़ चली जा और किशोरी की खोज में इधर-उधर घूमना छोड़ कर बराबर उसी किले में बैठी रह। कमला ने यह बात स्वीकार कर ली और वीरेन्द्रसिंह के चुनारगढ़ चले जाने के बाद भी कमला ने रोहतासगढ़ को नहीं छोड़ा, ईश्वर पर भरोसा करके उसी किले में बैठी रही।

यद्यपि उस किले का जनाना हिस्सा बिल्कुल सूना हो गया था, मगर जब से कमला ने उसमें अपना डेरा जमाया, तब से बीस-पच्चीस औरतें, जो कमला की खातिर के लिए राजा वीरेन्द्रसिंह की आज्ञानुसार लौंडियों के तौर पर रख दी गई थीं, वहाँ दिखाई देने लगी थीं। जब राजा वीरेन्द्रसिंह यहाँ से चुनारगढ़ की तरफ रवाना होने