सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
119
 


फर्श पर बैठ गईं और कमला ने बातचीत करना आरम्भ कर दिया।

कमला—(किशोरी से) क्यों बहिन! भूतनाथ तो राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों के साथ मिल-जुलकर काम करता था और सब कोई उससे खुश थे, फिर यकायक यह क्या हो गया कि उसे कैदखाने की गर्म हवा खानी पड़ी?

किशोरी-इसका हाल कमलिनी बहिन से पूछो।

कामिनी-क्योंकि वह इन्हीं का ऐयार था और इन्हीं की आज्ञानुसार काम करता था।

कमलिनी-(हँसकर) किसी का ऐयार था या किसी का बाप था, इससे क्या मतलब? जो था सो था-अब न कोई उसे अपना ऐयार बनाना पसन्द करेगा और न कोई अपना वाप कहना स्वीकार करेगा।

किशोरी-(मुस्कुराकर) जिस तरह अब तुम मायारानी को अपनी बहिन कहना उचित नहीं समझती।

कमलिनी-नहीं-नहीं, इस तरह और उस तरह में तो बड़ा फर्क है। कम्बख्त मायारानी तो वास्तव में हमारी बहिन है ही नहीं!

कमला—(ताज्जुब से) मायारानी तुम्हारी बहिन नहीं है? फिर तुमने मुझसे क्यों कहा था कि 'मायारानी हमारी बड़ी बहिन है!'

कमलिनी–तब तक मैं उसका असल हाल नहीं जानती थी, उसी तरह जिस तरह तुम भूतनाथ का असल हाल नहीं जानतीं और जब जान जाओगी तो न मालूम तुम्हारे दिल का क्या हाल होगा। खैर, वह सब जो कुछ हो लेकिन भूतनाथ का सच्चासच्चा हाल कभी-न-कभी तुम्हें मालूम हो ही जायगा। मगर देखो बहिन, दुनिया में कोई किसी के दोष का भागी नहीं हो सकता। जिस तरह ईमानदार बाप बदनीयत लड़के के दोष से दोषी नहीं हो सकता उसी तरह धर्मात्मा लड़का अपने कपटी कुटिल तथा कुचाली वाप के कामों का उत्तरदायी नहीं हो सकता। हर एक आदमी अपने किए का फल आप ही भोगेगा, उसके बदले में उसका कोई नातेदार या मित्र दण्ड नहीं पा सकता, पर हाँ बचाव में मदद जरूर कर सकता है, इसी के साथ-ही-साथ यह भी बँधी हुई बात है कि अच्छे और बरे का साथ बहुत दिनों तक निभ नहीं सकता चाहे वह आपस में दोस्त हो या भाई हों या बाप-बेटे हों, क्योंकि दोनों की प्रकृति में भेद रहता है और जब तक दोनों की प्रकृति एक या कुछ-कुछ मिलती जुलती न हो, प्रेम नहीं हो सकता।

कमला-क्षमा करना, क्योंकि मैं बीच ही में टोकती हूँ तब लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि 'बुरे की सोहवत करने से अच्छा आदमी भी बुरा हो जाता है?'

कमलिनी-ठीक है, जहाँ तक मैं समझती हूँ किसी एक बुरे आदमी की सोहबत में कोई एक भला आदमी बुरा नहीं हो सकता, बल्कि एक बुरा आदमी किसी एक भले आदमी के साथ से कुछ सुधर सकता है क्योंकि मन एक शुद्ध पदार्थ होता है। यदि वह किसी तरह के दबाव में न पड़ जाय या किसी तरह की जरूरियात उसे मजबूर न करें तो वह बराबर सचाई ही की तरह ढुलकता रहता है हाँ, यदि कोई एक अच्छे चालचलन का आदमी चार-पांच या दस-बीस बदमाशों की सोहबत में बैठे, तो निःसन्देह