पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२३

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गौर से देखना शुरू किया और एक महाराब के नीचे पहुँच कर खड़ी हो गई जिस पर यह लिखा हुआ था- "दूसरे दर्जे का तिलिस्मी दरवाजा।" मायारानी ने उस पहिये, को घुमाना शुरू किया जो उस महराब में लटकते हुए घण्टे के नीचे था। पहिया चारपाँच दफे घूम कर रुक गया, तब मायारानी वहाँ से हटी और यह कहती हुई घूम कर सामने वाली दीवार के पास गई कि 'देखें अब वे कम्बख्त क्योंकर बाग के बाहर जाते हैं!' दीवार में नम्बरवार बिना पल्ले की पाँच गालमारियाँ थीं और हर एक आलमारी में चार दर्जे बने हुए थे। पहिली आलमारी में शीशे की सुराहियाँ थीं, दूसरी में तांबे के बहुत से डिब्बे थे, तीसरी कागज के मुट्ठों से भरी थी, जिन्हें दीमकों ने बर्बाद कर डाला था, चौथी अष्ट धातु की छोटी-छोटी बहुत-सी मूरतें थीं और पांचवीं आलमारी में केवल चार ताम्रपत्र थे जिनमें खूबसुरत उभरे हुए अक्षरों में कुछ लिखा हुआ था।

मायारानी उस आलमारी के पास गई जिसमें शीशे की सुराहियाँ थीं और एक सुराही उठा ली। शायद उसमें किसी तरह का अर्क था, जिसे थोड़ा-सा पीने के बाद सुराही हाथ में लिए हए, वहाँ से हटी और दूसरी आलमारी के पास गई, जिसमें तांबे के डिब्बे थे। एक डिब्बा उठा लिया और वहाँ से रवाना हुई। जिस तरह उसका जाना हम लिख आये हैं, उसी तरह घूमती हई वह अपने दीवानखाने में पहुँची। जिसके आगे तरह-तरह के खुशनुमा पत्तों वाले खूबसूरत गमले सजाये हुए थे। वहाँ पहुँच कर उसने वह डिब्बा खोला। उसके अन्दर एक प्रकार की बुकनी भरी हुई थी। उसमें से आधी बुकनी अपने हाथ से खूबसूरत गमलों में छिड़कने के बाद बची हुई आधी बुकनी डिब्बे में लिए हुए वह दीवानखाने की छत पर चढ़ गई और अपने साथ केवल एक लौंडी को जिसका नाम लीला था और जो उसकी सब लौंडियों की सरदार थी, लेती गई। यह सब काम, जो हम ऊपर लिख आये हैं, मायारानी ने बड़ी फुर्ती से उसके पहले-पहले ही कर लिया जब तक कि उसके बागी सिपाही धनपत को लिए हुए बाग के दूसरे दर्जे के बाहर जायें।

जब मायारानी लीला को साथ लिये हए दीवानखाने की छत पर चढ़ गई तब उसने एक सुराही दिखाकर लीला से कहा, "चल्लू कर, इसमें से थोड़ा सा अर्क तुझे देती हूँ उसे पी जा और आफत से बची रह, जो थोड़ी ही देर में यहाँ के रहने वालों पर आने वाली है।"

लीला—(हाथ फैला कर) मैं खूब जानती हूँ कि आपकी मेहरबानी जितनी मुझ पर रहती है उतनी और किसी पर नहीं।

मायारानी—(लीला की अंजुली में अर्क डाल कर) इसे जल्दी पी जा और जो कुछ मैं कहती हूँ उसे गौर से सुन।

लीला-बेशक मैं पूरा ध्यान देकर सुनंगी, क्योंकि इस समय आपकी अवस्था बिल्कुल ही बदल रही है और यह जानने के लिए मेरा जी बहुत बेचैन है कि अब क्या किया जायगा?

मायारानी—मैं अपने भेद तुझसे छिपा नहीं रखती। जो कुछ मैं कर चुकी हूँ तुझे सब मालूम है। केवल दो भेद मैंने तझसे छिपाए, जिनमें से एक तो आज खुल ही