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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२४

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गया और एक का हाल मैं तुझसे फिर किसी समय कहूँगी। इन भेदों के विषय में मेरा विश्वास था कि यदि किसी को मालूम हो जायगा तो मेरी जान आफत में फंस जायगी और आखिर वैसा ही हुआ। तू देख ही चुकी है कि दो कम्बख्त नकाबपोशों ने यहाँ पहुँच कर क्या गजब मचा रखा है। अब जहाँ तक मैं समझती हूं, धनपत का भेद छिपा रहना बहुत मुश्किल है और साथ ही इसके कम्बख्त फौजी सिपाहियों का भी मिजाज बिगड़ गया है। मान लिया जाय कि अगर मैंने किसी तरह की बुराई की भी तो उनको मेरे खिलाफ होना मुनासिब न था। खैर, सिपाही लोग तो उजड्ड हुआ ही करते हैं, मगर मुझसे बुराई करने का नतीजा कदापि अच्छा न होगा। अफसोस, उन लोगों ने इस बात पर ध्यान न दिया कि आखिर मायारानी तिलिस्म की रानी है! देख, मैंने इस बाग के बाहर जाने का रास्ता बन्द कर दिया, अब उन लोगों की मजाल नहीं कि यहां से बाहर जा सकें, बल्कि थोड़ी ही देर में तू देखेगी कि उन लोगों को मैं कैसे हलाल करती हूँ। यह दवा जो मैंने गमलों में छिड़की है, बहुत ही तेज और अपनी महक दूर-दूर तक फैलाने वाली है, इससे बढ़कर बेहोशी की कोई दवा दुनिया में न होगी, और यही उन बदमाशों के साथ जहर का काम करेगी। तू उन सभी के पास जा और उन्हें ऊंच-नीच समझा कर मेरे पास ले आ–या-नहीं, अच्छा देख-खैर जाने दे—मैं तुझसे एक बात और कहती हूँ-यह तो मैं समझ ही चुकी कि अब मेरी जान जाना चाहती है मगर तो भी हजारों को मारे बिना मैं न छोडूंगी। अफसोस, वे दोनों कम्बख्त नकाबपोश न मालूम कहाँ चले गए। खैर, देखा जायगा-ओफ, (अपनी ठुड्डी पकड़ के) मुझे शक है-एक तो उनमें से जरूर–हाँ जरूर-जरूर-बेशक वही है और होगा, दूसरा भी-मैं समझ गई, मगर ओफ, उस चीज का जाना ही बुरा हुआ। अच्छा अब मैं दूसरे काम की फिक्र करती हूँ, अब तो जान पर खेलना ही पड़ा, एक दफे तो मुझे तुझे छोड़ हाँ, तू मेरा मतलब तो समझ गई न? इस समय मेरी तबीयत-अच्छा, तू जा, देख मान जाय तो ठीक है, नहीं तो आज इस बाग को मैं उन्हीं के खून से तर करुँगी!

इस समय मायारानी की बातें यद्यपि बिल्कुल बेढंगी और बेतुकी थों तथापि चालाक और धूर्त लीला उसका मतलब समझ गई और यह कहती हुई वहाँ से रवाना हुई, "आप चिन्ता न कीजिए, मैं अभी जाकर उन सभी को ठीक करती हूँ। जरा आप अपना मिजाज ठिकाने कीजिए और तिलिस्मी कवच को भी झटपट..."


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मायारानी के सिपाही जो दोनों नकाबपोशों को गिरफ्तार करने आए थे, धनपत को लिए हुए बाग के पहले दर्जे की तरफ रवाना हुए जहाँ वे रहा करते थे, मगर वे इच्छानुसार अपने ठिकाने न पहुँच सके, क्योंकि बाग के दूसरे दर्जे के बाहर निकलने का रास्ता मायारानी की कारीगरी से बन्द हो गया था। ये दरवाजे तिलिस्मी और बहुत