पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
234
 

जिन्न–क्या हर्ज है, मुझे तुम हर वक्त अपने पास समझो और बेफिक्र रहो।

भूतनाथ-जो मर्जी।

तेजसिंह ने जो छिपे हुए उन दोनों के पीछे जा रहे थे, ये बातें भी सुन ली और उन्हें हद से ज्यदा आश्चर्य हुआ। जिन्न और भूत दोनों उस मकान के पास पहुँचे जिसकी छत फोड़ी गई थी और जो तिलिस्मी तहखाने के अन्दर जाने का दरवाजा था। भूतनाथ ने कमन्द लगाई और उसी के सहारे जिन्न तथा भूतनाथ उसके ऊपर चढ़ गए और टूटी हुई छत की राह से अन्दर उतर गए। तेजसिंह ने भी उसके अन्दर जाने का इरादा किया मगर फिर कुछ सोचकर लौट आए और उसी कमरे की छत पर चले गए जहां अपने साथियों को छोड़ा था।

अब हम पुनः कमरे के अन्दर का हाल लिखते हैं। जब मायारानी से तिलिस्मी खंजर छीन कर वह जिन्न कमरे के बाहर चला गया तो मायारानी बहत ही डरी और जिन्दगी से नाउम्मीद होकर सोचने लगी कि अब जान बचना मुश्किल है, बड़ी नादानी की जो यहाँ आई, भाग निकलने पर भी धनपत वाली करोड़ों रुपये की जमा मेरे हाथ में थी। अगर चाहती या आज के दिन की खबर होती तो किसी और मुल्क में चली जाती और जिन्दगी भर अमीरी के साथ आनन्द करती। मगर दुमश्नी की डाह में वह भी न होने पाया, असंभव बातों के लालच में पड़ कर शेरअलीखाँ के घर में वह सब माल रख दिया और उस स्वार्थी और मतलबी ने ऐसे समय में मेरे साथ दगा की। अब क्या किया जाय? मैं कहीं की भी न रही। एक तो अब मुझे बचने की आशा ही नहीं रही, फिर अगर मान भी लिया जाय कि पहले की तरह यदि अब भी राजा गोपालसिंह मुझे छोड़ देंगे तो मैं कहाँ जाकर रहूँगी और किस तरह अपनी जिन्दगी बिताऊँगी? हाय, इस समय मेरा मददगार कोई भी नहीं दिखाई देता!

मायारानी इन सब बातों को सोच रही थी और शेरअलीखाँ क्रोध में भरा हआ लाल आँखों से उसे देख रहा था कि यकायक कई आदमियों के आने की आहट पाकर वे दोनों चौंके और दरवाजे की तरफ घूम गये। हमारे बहादुर ऐयारों पर नजर पड़ी और सब के सघ आश्चर्य से उनकी तरफ देखने लगे।

सूबह की सफेदी ने रात की स्याही को धोकर अपना रंग इतमा जमा लिया था कि बाग का हरएक गुलबूटा साफ-साफ दिखाई देने लग गया था जब तेजसिंह, देवीसिंह, भैरोंसिंह और तारासिंह कमरे की छत पर से नीचे उतरे और शेरअलीखाँ, मायारानी और उनके आदमियों के सामने जा खड़े हुए।

तेजसिंह ने मुस्कराते हए मायारानी की तरफ देखा और आगे बढ़कर कहा

तेजसिंह केवल राजा गोपालसिंह ही ने नहीं, बल्कि हम लोगों ने भी उनकी आज्ञा पाकर इसलिए कई दफे तुझे छोड़ दिया था कि देखें न्यायी ईश्वर तुझे तेरे पापों का फल क्या देता है मगर ईश्वर की मर्जी का पता लग गया। वह नहीं चाहता कि तू एक दिन भी आराम के साथ कहीं रह सके और हम लोगों के सिवाय किसी दूसरे या गैर पर अपनी जिन्दगी की आखिरी नजर डाले। केवल तू ही नहीं (दारोगा की तरफ देखकर) इस नकटे की बदकिस्मती भी इसे किसी दूसरी जगह जाने नहीं देती और घुमा