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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२३४

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मुन्दर—(क्रोध में आकर) तो क्या तुम अपने मन की ही करोगे?

शेरअली-बेशक!

मुन्दर—अच्छा तो मैं जाती हूँ, जो तुम्हारे जी में आवे, करो।

शेरअली-ऐसा नहीं हो सकता।

इतना मानते ही मायारानी ने तिलिस्मी खञ्जर कमर से निकाल लिया और शेरअलीखाँ की तरफ बढ़ा ही चाहती थी कि सामने के दस्ताव से आता हुआ वही जिन्न दिखाई पड़ा।

जिन्न-(मायारानी की तरफ इशारा करके) इसके कब्जे से तिलिस्मी खञ्जर ले लेना मैं भूल गया था क्योंकि जब तक यह खञ्जर इसके पास रहेगा, यह किसी के काबू में न आएगी।

यह कहकर उसने मायारानी की तरफ हाथ बढ़ाया और मायारानी ने वह खंजर उसके बदन के साथ लगा दिया, मगर उस पर इसका असर कुछ भी न हुआ। जिन्न ने मायारानी के हाथ से खंजर छीन लिया तथा अँगूठी भी निकाल ली और इसके बाद फिर बाहर का रास्ता लिया।

दरोगा और जितने आदमी वहाँ मौजूद थे, सब आश्चर्य और डर के साथ मुंह देखते ही रह गये, कोई एक शब्द भी मुँह से न निकाल सका।

अब इस जगह हम पुनः थोड़ा-सा हाल उन ऐयारों का लिखना चाहते हैं जो इस कमरे की छत पर बैठे सब तमाशा देख और सभी की बातें सुन रहे थे।

शेरअलीखाँ को छोड़कर जब वह जिन्न कमरे के बाहर निकला तो उसी समय तेजसिंह छत के नीचे उतरे और इस फिक्र में आगे की तरफ बढ़े कि जिन्न का पीछा करें मगर जब ये छिपते हुए सदर दरवाजे के पास पहुँचे, जिधर से वह जिन्न आया और फिर गया था तो उन्होंने और भी कई बातें ताज्जूब की देखीं। एक तो यह कि वह जिन लौट कर चला नहीं गया, बल्कि अभी तक दरवाजे की बगल में छिपा हुआ खड़ा के और कान लगाकर सब बातें सुन रहा है। दूसरे यह कि जिन्न अकेला नहीं है, बल्कि उसके साथ एक आदमी और भी है जो स्याह नकाब से अपने को छिपाये हुए और हाथ में एक नंगी तलवार लिए है। जब यह जिन्न दोहरा कर कमरे के अन्दर गया और मायारानी से तिलिस्मी खंजर छीन कर फिर बाहर चला आया तो अपने साथी को लिए हए बाग की तरफ चला और कुछ दूर जाने के बाद अपने साथी से बोला, "आओ भूतनाथ, अब तुमको फिर उसी कैदखाने में छोड़ आवें जिसमें राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों ने तम्हें कैद किया था और उसी तरह हथकड़ी-बेड़ी तुम्हें पहना दें जिसमें उन लोगों को इस बात का गुमान भी न हो कि भूतनाथ को कोई छुड़ा ले गया था!"

भूतनाथ-बहुत अच्छा, मगर यह तो कहिये कि अब मेरी क्या दशा होगी?

जिन्न-दशा क्या होगी? मैं तो कह ही चुका कि तुम हर तरह से बेफिक्र रहो ठीक समय पर मैं तुम्हारे पास पहुँच जाऊँगा।

भूतनाथ-जैसे आपकी मर्जी, मगर मैं समझता हूँ कि राजा वीरेन्द्रसिंह के आने में अब विलम्ब नहीं और उनके आने के साथ ही मेरा मुकदमा पेश हो जायगा।