पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२६

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इसी तरह की ऊँच-नीच की बहुत-सी बातें लीला उन सिपाहियों से देर तक कहती रही और सिपाही लोग भी लीला की बात पर गौर कर ही रहे थे कि यकायक बाईं तरफ से एक शंख के बजने की आवाज आई, घूम कर देखा तो वे ही दोनों नकाबपोश दिखाई पड़े जो हाथ के इशारे से उन सिपाहियों को अपनी तरफ बुला रहे थे। उन्हें देखते ही सिपाहियों की अवस्था बदल गई और उनके दिल के अन्दर उम्मीद, रंज, डर और तरदुद्द का चर्खा तेजी के साथ घूमने लगा। लीला की बातों पर जो कुछ सोच कर रहे थे उसे छोड़ दिया और धनपत को साथ लिए हुए इस तरह दोनों नकाबपोशों की तरफ बढ़े जैसे प्यासे पंसाले (पौसारे) की तरफ लपकते हैं।

जब उन दोनों नकाबपोशों के पास पहुंचे तो एक नकाबपोश ने पुकार कर कहा, "इस बात से मत घबराओ कि मायारानी ने तुम लोगों को मजबूर कर दिया और इस बाग से बाहर जाने लायक नहीं रक्खा। आओ हम तुम सभी को इस बाग से बाहर कर देते हैं मगर इसके पहले तुम्हें एक ऐसा तमाशा दिखाना चाहते हैं जिसे देख कर तुम बहुत ही खुश हो जाओगे और हद से ज्यादा बेफिक्री तुम लोगों के भाग में पड़ेगी, मगर वह तमाशा हम एकदम से सभी को नहीं दिखाना चाहते। मैं एक कोठरी में (हाथ का इशारा करके) जाता हूँ, तुम लोग बारी-बारी से पांच-पाँच आदमी आओ और अद्भुत, अद्वितीय, अनूठा तथा आश्चर्यजनक तमाशा देखो।"

इस समय दोनों नकाबपोश जिस जगह खड़े थे, उसके पीछे की तरफ एक दीवार थी जो बाग के दूसरे और तीसरे दर्जे की हद को अलग कर रही थी और उसी जगह पर एक मामूली कोठरी भी थी। बात पूरी होते ही दोनों नकाबपोश पाँच सिपाहियों को अपने साथ आने के लिए कहकर उस कोठरी के अन्दर घुस गए। इस समय इन सिपाहियों की अवस्था कैसी थी, इसे दिखाना जरा कठिन है। न तो इन लोगों का दिल उन दोनों नकाबपोशों के साथ दुश्मनी करने की आज्ञा देता था और न यही कहता था कि उन दोनों को छोड़ दो और जिधर जाएँ जाने दो।

जब दोनों नकाबपोश कोठरी के अन्दर घुस गए तो उसके बाद पाँच सिपाही जो दिलावर और ताकतवर थे कोठरी में घुसे और चौथाई घड़ी तक उसके अन्दर रहे। इसके बाद जब वे उस कोठरी के बाहर निकले तो उनके साथियों ने देखा कि उन पाँचों के चेहरे से उदासी झलक रही है, आँखों से आँसू की बूंदें टपक रही हैं और वे सिर झुकाए अपने साथियों की तरफ आ रहे हैं। जब पास आए तो उन पाँचों की अवस्था एकदम बदल जाने का सबब सिपाहियों ने पूछा जिसके जवाब में उन पांचों ने कहा, "पूछने की कोई आवश्यकता नहीं है, तुम लोग पाँच-पाँच आदमी बारी-बारी से जाओ और जो कुछ है अपनी आँखों से देख लो, हम लोगों से पूछोगे तो कुछ भी न बतायेंगे, हां इतना अवश्य कहेंगे कि वहाँ जाने में किसी तरह का हर्ज नहीं है।"

आपस में ताज्जुब से भरी बातें करने के बाद और पाँच सिपाही उस कोठरी के अन्दर घुसे जिसमें दोनों नकाबपोश थे और पहले पाँचों की तरह ये पांचों भी चौथाई घड़ी तक उस कोठरी के अन्दर रहे। इसके बाद जब बाहर निकले तो इन पाँचों की भी वही अवस्था थी जैसी उन पाँचों की जो इनके पहले कोठरी के अन्दर से हो कर आए