पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/३५

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खुशी के साथ किया। बल्कि इसके इनाम में अजायबघर की ताली मायारानी से ले ली!

कममिनी—क्या अजायबघर की ताली भूतनाथ ने ले ली?

गोपालसिंह―हाँ।

कमलिनी—यह बड़ा काम हुआ और इस काम के लिए मैंने उसे सख्त ताकीद की थी। अब वह ताली किसके पास है?

गोपाससिंह―ताली मेरे पास है, मुझे आशा न थी कि भूतनाथ मुझे देगा, मगर उसने कोई उज्र न किया।

कमलिनी―वह आपसे किसी तरह उज्र नहीं कर सकता, क्योंकि मैंने उसे कसम देकर कह दिया था कि जितना मुझे मानते हो, उतना ही राजा गोपालसिंह को मानना। असल बात तो यह है कि भूतनाथ बड़े काम का आदमी है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि वह राजा वीरेन्द्रसिंह का गुनहगार है और उसने सजा पाने लायक काम किया है, मगर वह कसूर उससे धोखे में हुआ। इश्क का भूत उसके ऊपर सवार था और उसी ने उससे वह काम कराया, पर वास्तव में उसकी नीयत साफ है और उस कसूर का उसे सख्त रंज है, ऐसी अवस्था में जिस तरह हो, उसका कसूर माफ होना ही चाहिए।

गोपालसिंह―बेशक-बेशक, और उसके बाद तुम्हारी बदौलत उसके हाथ से कई ऐसे काम निकले हैं, जिनके आगे वह कसूर कुछ भी नहीं है।

कमलिनी―अच्छा अब खुलासा कहिए कि भूतनाथ ने आपके मारने के विषय में किस तरह महारानी को धोखा दिया और अजायबघर की ताली क्योंकर ली?

राजा गोपालसिंह के विषय में भूतनाथ ने जिस तरह मायारानी को धोखा दिया था, उसका हाल हम ऊपर के बयानों में लिख आये हैं। इस समय वही हाल राजा गोपालसिंह ने अपने तौर पर कमलिनी से बयान किया। ताज्जुब नहीं कि भूतनाथ के विषय में हमारे पाठकों को धोखा हुआ हो और वे समझ बैठे हों कि भूतनाथ वास्तव में मायारानी से मिल गया, मगर नहीं। उन्हें अब मालूम हुआ होगा कि भूतनाथ ने मायारानी से मिलकर केवल अपना काम साधा और मायारानी को हर तरह से नीचा दिखाया।


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अहा, ईश्वर की महिमा भी कैसी विचित्र है! बुरे कर्मों का बुरा फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। जो मायारानी अपने सामने किसी को कुछ समझती ही न थी, वही आज किसी के सामने जाने या किसी को मुँह दिखाने का साहस नहीं कर सकती। जो मायारानी कभी किसी से डरती ही न थी, वही आज एक पत्ते के खड़खड़ाने से भी डर कर बदहवास हो जाती है। जो मायारानी दिन-रात हँसी-खुशी में बिताया करती थी, वह आज रो-रोकर अपनी आँखें सुजा रही है। संध्या के समय भयानक जंगल में उदास