पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/४१

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आये हैं कि इस टीले पर एक कोठरी थी जिसमें पत्थर के चबूतरे पर पत्थर ही का एक शेर बैठा हुआ था। वह चबूतरा और शेर देखने में तो पत्थर का मालूम होता था, मगर वास्तव में किसी मसाले का बना हुआ था। दोनों ऐयार उस शेर के पास जाकर खड़े हो गये और बातचीत करने लगे। भूतनाथ और देवीसिंह को इस समय इस बात का गुमान भी न था कि उनके पीछे-पीछे दो औरतें कुछ दूर से आ रही हैं और इस समय भी कोठरी के बाहर छिपकर खड़ी उन दोनों की बातें सुनने के लिए तैयार हैं। इन दोनों औरतों में से एक तो मायारानी और दूसरी नागर है। पाठकों को शायद ताज्ज़ब हो कि मायारानी को तो चोरी की इल्जाम में काशिराज के सवारों ने गिरफ्तार कर लिया था, फिर वह यहाँ क्योंकर आई? इसलिए थोड़ा हाल मायारानी का इस जगह लिख देना उचित जान पड़ता है।

जब उन सवारों ने चारों तरफ से मायारानी को घेर लिया तब एक दफे तो वह बहुत ही परेशान हुई मगर तुरन्त ही सम्हल बैठी और फुर्ती के साथ उसने अपने तिलिस्मी तमंचे से काम लिया। उसने तमंचे में तिलिस्मी गोली भर कर उसी जगह जमीन पर मारी जहाँ आप बैठी हुई थी। एक आवाज हुई और गोली में से बहुत-सा धुआँ निकलकर धीरे-धीरे फैलने लगा मगर सवारों ने इस बात पर कुछ ध्यान न दिया और मायारानी तथा उसकी लौंडियों को गिरफ्तार कर लिया। मायारानी के तमंचा चलाने पर सवारों को क्रोध आ गया था इसलिए कई सवारों ने मायारानी की जूतों और लातों से खातिरदारी भी की, यहाँ तक कि वह बेहाल होकर जमीन पर गिर पड़ी, उसके साथही-साथ लीला तथा और लौंडियों ने भी खूब मार खाई, मगर इस बीच में तिलिस्मी गोली का धुआँ हल्का होकर चारों तरफ फैल गया और सभी के आँख-नाक में घुसकर अपना काम कर गया। मायारानी और लीला को छोड़ बाकी जितने वहाँ थे सबके सब बेहोश हो गये थे। न सवारों को दीन-दुनिया की खबर रही और न मायारानी की लौंडियों को तन-बदन की सुध रही। पाठकों को याद होगा कि बेहोशी का असर न होने के लिए मायारानी ने तिलिस्मी अर्क पी लिया था और वही अर्क लीला को पिलाया था। अभी तक इस अर्क का असर बाकी था जिसने मायारानी और लीला को बेहोश होने से बचाया।

मार के सदमे से आधी घड़ी तक तो मायारानी में उठने की सामर्थ्य न रही, इसके बाद जान के खौफ से वह किसी तरह उठी और लीला को साथ लेकर वहाँ से भागी। बेचारी लौंडियों को, जिन्होंने ऐसे दुःख के समय में भी मायारानी का साथ दिया था, मायारानी ने कुछ भी न पूछा, हाँ लीला का ध्यान उस तरफ जा पड़ा। उसने अपने ऐयारी के बटुए में से लखलखा निकाला और लौंडियों को सुंघाकर होश में लाने के बाद सभी को भाग चलने के लिए कहा।

लौंडियों को साथ लिए हुए लीला और मायारानी वहाँ से भागी मगर घबराहट के मारे इस बात को न सोच सकीं कि कहाँ छिपकर अपनी जान बचानी चाहिए, अस्तु वे सब सीधे दारोगा वाले बँगले की तरफ रवाना हुई। उस समय सवेरा होने में कुछ विलम्ब था, वे खौफ के मारे छिपाती-छिपती दिन-भर बराबर चलती गईं और रात को