सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
41
 


भी कहीं ठहरने की नौबत न आई। आधी रात से कुछ ज्यादा जा चुकी थी जब वे सब दारोगा वाले बंगले पर जा पहुंचीं। इत्तिफाक से नागर भी रास्ते ही में इन लोगों से मिली जो मायारानी से मिलने के लिए मुश्की घोड़ी पर सवार खास बाग की तरफ जा रही थी। इस नागर ने मायारानी को न पहचाना, मगर लीला ने नागर को पहचान कर आवाज दी। नागर जब मायारानी के पास आई तो उसे ऐसी अवस्था में देखकर ताज्जुब करने लगी। मायारानी ने संक्षेप में अपना हाल नागर से कहा जिसे सुन वह अफसोस करने लगी और बोली, "मुझको भी भूतनाथ पर कुछ-कुछ शक होता है, ताज्जुब नहीं कि उसने धोखा दिया हो, खैर, कोई हर्ज नहीं है मैं बहुत जल्द इस बात का पता लगा लूंगी। आप काशीजी चलकर मेरे मकान में रहिये और देखिये कि मैं भूतनाथ को क्योंकर फंसाती हूँ।"

मायारानी और नागर की बातें पूरी न होने पाई थीं कि सामने से दो आदमियों के आने की आहट मालूम हुई। वे दोनों देवीसिंह और भूतनाथ थे। यद्यपि अँधेरे के कारण मायारानी ने उन दोनों को न पहचाना और पहचानने की उसे कोई आवश्यकता भी न थी, मगर जब वे दोनों टीले की तरफ मुड़े, तब मायारानी को शक पैदा हुआ और उसने धीरे से नागर के कान में कहा—'दोनों टीले पर जा रहे हैं इससे मालूम होता है कि कमलिनी के साथी हैं, क्योंकि उस टीले पर बिना जानकार आदमी के और कोई इस समय कदापि न जायगा।

नागर हाँ, मुझे भी यही शक होता हैं कि ये दोनों कमलिनी के साथी या वीरेन्द्रसिंह के ऐयार हैं और ताज्जुब नहीं कि आपके तिलिस्मी बाग में जाने की नीयत से उस टीले पर जा रहे हों, क्योंकि बावाजी की जुबानी मैं कई दफे सुन चुकी हूँ कि तिलिस्मी बाग में जाने के लिए इस टीले पर से भी एक रास्ता है।

मायारानी–हाँ, यह तो मैं भी जानती हैं कि इस टीले पर से मेरे तिलिस्मी बाग में जाने का रास्ता है मगर इस राह से क्योंकर जाया जा सकता है, इसकी मुझे खबर नहीं है। ताज्जुब नहीं कि खून से लिखी किताब की बदौलत कमलिनी को इन सब रास्तों का हाल मालूम हो गया हो, क्योंकि वह किताब नानक और भूतनाथ की बदौलत कमलिनी के हाथ पहुँची ही होगी।

नागर बेशक ऐसा ही है। खैर, चलिए इन दोनों के पीछे-पीछे चलें। ताज्जुब नहीं कि बहुत-सी बातों का पता लग जाय।

इसके बाद मायारानी केवल नागर को साथ लिए भूतनाथ और देवीसिंह के पीछे-पीछे छिपकर टीले पर गई और जब वे दोनों ऐयार कोठरी के अन्दर घुसे तो बाहर छिपकर भूतनाथ तथा देवीसिंह आपस में जो बातें करने लगे, उन्हें सुनने लगी जैसा कि हम ऊपर लिख आए हैं।

उस चबूतरे पर बैठे हुए शेर के पास खड़े होकर भूतनाथ और देवीसिंह नीचे लिखी बातें करने लगे।

भूतनाथ-(शेर के सिर पर हाथ रखकर) तिलिस्म के चौथे दर्जे में जो देवमन्दिर है उसमें जाने का यही रास्ता है।