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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/४३

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देवीसिंह-क्या राजा गोपालसिंह से वहाँ मुलाकात होगी?

भूतनाथ-अवश्य, बल्कि कमलिनी, लाड़िली और दोनों कुमार भी वहाँ मौजद होंगे।

देवीसिंह-इस दरवाजे के खोलने की तरकीब राजा गोपालसिंह ने आपको बता दी?

भूतनाथ–हाँ, राजा गोपालसिंह और कमलिनी ने भी दरवाजे के खोलने की तरकीब बताई थी, मगर यह रास्ता बड़ा ही खतरनाक है। अच्छा, अब मैं दरवाजा खोलता हूँ।

इतना कहकर भूतनाथ ने शेर की बाईं आँख में उँगली डाली। आँख अन्दर की तरफ घस गई और इसके साथ ही शेर ने मुँह खोल दिया। भूतनाथ ने दूसरा हाथ शेर शेर के मुँह में डाला और कोई पेंच घुमाया जिससे उस चबूतरे के आगेवाला पत्थर हटकर जमीन के साथ सट गया जिस पर शेर बैठा हुआ था और नीचे उतरने के लिए रास्ता मालूम पड़ने लगा। देवीसिंह ने बत्ती जलाने का इरादा किया मगर भूतनाथ ने मना किया और कहा कि नहीं, तुम चुपचाप मेरे पीछे-पीछे चले आओ, नीचे उतर जाने के बाद बत्ती जलावेंगे। आगे-आगे भूतनाथ और पीछे-पीछे देवीसिंह, दोनों ऐयार नीचे उतरे और वहाँ बटए में से सामान निकालकर भूतनाथ ने मोमबत्ती जलाई। वह एक कोठरी थी जिसमें तीन तरफ तो दीवार थी और एक तरफ की दीवार सुरंग के रास्ते के तौर पर थी अर्थात् उधर से किसी सरंग में जाने का रास्ता था। कोठरी के बीचोंबीच में लोहे का एक-एक खम्भा था और खम्भे के ऊपर एक गरारीदार पहिया था जिसे भूतनाथ ने घुमाया और देवीसिंह के कहा, "जिस राह से हम आये हैं उसे यहाँ से बन्द करने की यही तरकीब है और (हाथ का इशारा करके) यही सुरंग तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में गई है!" इसके बाद भूतनाथ और देवीसिंह सुरंग में घुसकर आगे की तरफ बढ़े।

इस सुरंग की चौड़ाई चार हाथ से ज्यादा न होगी। यहां की जमीन स्याह और सफेद पत्थरों से बनी हुई थी अर्थात् एक पत्थर सफेद तो दूसरा स्याह, इसके बाद सफेद और फिर स्याह, इसी तरह दोनों रंग के पत्थर सिलसिलेवार लगे हुए थे। सुरंग के दोनों तरफ की दीवारें लोहे की थीं और थोड़ी-थोड़ी दूर पर लोहे के बनावटी आदमी दीवार के साथ खड़े थे जो अपने लम्बे हाथ फैलाए हुए थे। भूतनाथ ने देवीसिंह की तरफ देखकर कहा, "इस राह से जाना और अपनी जान पर खेलना एक बराबर है। देखिए बहुत सम्हल कर मेरे पीछे चले आइए और इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखिए कि स्याह पत्थर पर पैर न पड़ने पावे नहीं तो जान न बचेगी। कमलिनी ने मुझे अच्छी तरह समझा कर कहा था कि सुरंग की दीवार के साथ जो लोहे के आदमी हाथ फैलाये खड़े हैं वे उस समय काम करते हैं जब कोई स्याह पत्थर पर पैर रखता है। स्याह पत्थर पर पैर रखते ही वे उसको अपने दोनों हाथों से ऐसा पकड़ लेते हैं कि फिर किसी तरह उनके कब्जे से निकल नहीं सकता। मैं समझता हूं कि इस सुरंग में कई आदमी धोखे में पड़कर मारे गये होंगे, इसलिए उचित है कि मेरे और तुम्हारे दोनों के हाथ में एक-एक मोमबत्ती रहे।

भूतनाथ की बातें सुनकर देवीसिंह ताज्जुब करने लगे, आखिर लाचार हो कर